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तृतीयाध्यायः
छाया- जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः कुर्योः मनुष्याः सुखमसुखममुत्तमद्धि प्राप्ताः
प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा-देवकुरौ चैवोत्तरकुरौ चैव॥ १४ ॥ जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुष्याः सुखममुत्तमद्धिं प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा-हरिवर्षे चैव रम्यक् वर्षे चैव ॥ १५ ॥ जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुष्याः सुखमदुःखममुत्तमर्द्धि प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा-हैमवते चैवैरण्यवते चैव १६ जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः क्षेत्रयोः मनुष्याः दुःखमसुखममुत्तमर्द्धि प्राप्ताः प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा-पूर्वविदेहे चैवापरविदेहे चैव ॥१७॥ जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः वर्षयोः मनुष्याः षड्विधमपि कालं प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तद्यथा-भरते चैवैरावते चैव ॥१८॥ जम्बूद्वीपे मन्दिरस्य पर्वतस्य पौरस्त्यपश्चिमाभ्यामपि, नैवास्ति
अवसर्पिणी नैवास्ति उत्सर्पिणी अवस्थितः तत्र कालः प्रज्ञप्तः । भाषा टीका - जम्बूद्वीप के देवकुरु तथा उत्तरकुरु के मनुष्य प्राप्त की हुई सुखमसुखम की उत्तम ऋद्धि को अनुभव करते हुए विहार करते हैं। (यह उत्तम भोगभूमि है)
जम्बूद्वीप के हरिवर्ष और रम्यकवर्ष नाम के दो क्षेत्रों के मनुष्य सुखमा नाम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर अनुभव करते हुए विहार करते हैं। (यह मध्यम भोग भूमि है)
___ जम्बूद्वीप के हैमवत और हैरण्यवत नाम के दो क्षेत्रों के मनुष्य सुखमदुःखमा नाम की उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर अनुभव करते हुए विहार करते हैं । (यह जघन्य भोग भूमि है)
__ जम्बूद्वीप के पूर्व और पश्चिम विदेह नाम के दो क्षेत्रों के मनुष्य दुःखमसुखम नाम को उत्तम ऋद्धि को प्राप्त कर अनुभव करते हुए विहार करते हैं, (यहां सदा चौथा काल रहने से कर्मभूमि रहती है।)
जम्बूद्वीप के भरत और ऐरावत नाम के दो क्षेत्रों के मनुष्य छहों प्रकार के काल का अनुभव करते हुए बिहार करते हैं ।
जम्बूद्वीप में सुमेरु पर्वत के पूर्व तथा पश्चिम में भी उत्सर्पिणी अथवा अवसर्पिणी नहीं है, वरन् एक निश्चित काल है।