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तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 259 सर्वार्थसिद्धि कोशकार ने 'वृत्तिः' (वृत्+क्तिन्) का अर्थ भाष्य, टीका, विवृति आदि किया है
और दृष्टान्त रूप में काशिकावृत्ति को ग्रहण किया गया है। वृत्ति ग्रन्थ में सूत्रों के अर्थ की प्रधानता होती है। इसी कारण सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में तत्त्वार्थसूत्र के अर्थ को प्रधानता से स्पष्ट किया गया है।
सिद्धान्ततः वृत्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका आदि के स्वरूप या लक्षण स्वतंत्र निर्धारित हैं। पर व्यवहार में जैन परम्परा में ही नहीं अपितु भारतीय सन्दर्भ में भी, इसकी स्थिति कुछ पृथक् ही प्रतीत होती है। अकलंकदेव ने तत्त्वार्थाधिगमभाष्य का वृत्ति शब्द से उल्लेख किया है और आगे 'अयमभिप्रायो वृत्तिकारस्य' करके 'कालश्च' सूत्र का उल्लेख किया है। उन्होंने यहाँ पर 'वृत्तिकारस्य' शब्द से सर्वार्थसिद्धि का ग्रहण किया है।
जैन परम्परा में भी वृत्ति, भाष्य आदि का प्रयोग एकमेव हो गया प्रतीत होता है। यही कारण है कि न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र ने तत्त्वार्थवार्तिक को भाष्य शब्द से संकेतित किया है। एक अन्य उदाहरण यह भी है कि अकलंकदेव ने लघीयस्त्रय पर स्वयं विवृति लिखी है। यह विवृति कारिकाओं की व्याख्या रूप न होकर उसमें सूचित विषयों की पूरक है। इसी प्रकार की पूरक वृत्ति धर्मकीर्तिकृत प्रमाणवार्तिक के स्वार्थानुमान परिच्छेद पर भी मिलती है। अकलंककृत एक अन्य ग्रन्थ की ऐसी विवृति का न्यायविनिश्चयविवरण के कर्ता वादिराजसूरि ने एक स्थान पर वृत्ति शब्द से और दूसरे स्थान पर चूर्णि शब्द से उल्लेख किया है। इससे प्रतीत होता है कि पुरातन आचार्य या ग्रन्थकार वृत्ति, विवृति, चूर्णि, भाष्य, वार्तिक आदि को सामान्यतः एक रूप मानते रहे हैं।
सर्वार्थसिद्धि में लगभग 85 उद्धरण मिलते हैं, जो वाक्य-वाक्यांश, पद्यपद्यांश, या गाथा-गाथांश के रूप में ग्रन्थान्तरों से लिये गये हैं। इनमें वेद से मात्र एक, षड्दर्शन, बौद्ध एवं चार्वाक मत से तेरह, प्राकृत जैन आगम, आगमिक एवं अन्य साहित्य से 21, जैन दार्शनिक संस्कृत साहित्य से सात, जैन आचारविषयक चार, लौकिक/साहित्यिक नौ एवं व्याकरण के 32 उद्धरण हैं।
इनमें एक उद्धरण वेद से है, जो भिन्न-भिन्न दो प्रसंगों में उद्धृत है-1. 'पुरुष एवेदं सर्वम्' इत्यादि कैश्चित् कल्प्यत' इति। 2. 'पुरुष एवेदं सर्वम्' इति वा नित्य एव अनित्य एवेति'। ये दोनों उद्धरण ऋग्वेद (10.90.1) से ग्रहण किये गये हैं।