________________
260 Studies in Umāsvāti
षड्दर्शन सर्वार्थसिद्धि में सात उद्धरण ऐसे हैं जो षड्दर्शनों से सम्बद्ध प्रतीत होते हैं। इनमें कुछ उद्धरणों का अर्धांश ही उस परम्परा की कृतियों में मिलता है एवं कुछ ऐसे हैं, जिनके स्रोत की जानकारी नहीं मिल सकी है1. 'चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम्, तच्च ज्ञेयाकारपरिच्छेद-पराङ्मुखम्' इति।-1.0.2
(योगभाष्य 1.9 पर 'चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपमिति' पाठ मिलता है, लेकिन
शेषांश वहाँ पर नहीं मिलता।) 2. 'बुद्ध्यादिवैशेषिकगुणोच्छेदः पुरुषस्य मोक्षः' इति।-1.0.2 (वैशेषिक) 3. 'सन्निकर्षः प्रमाणम् इन्द्रियप्रमाणमिति केचित् कल्पयन्ति।'-1.10.166
(नैयायिक) 4. 'अक्षमक्षं प्रति यद् वर्तते तत्प्रत्यक्षमित्यभ्युपगमात'-1.12.178 (न्यायबिन्दु
टीका पृ. 19: 'अक्षमक्षं प्रति वर्तते तत्प्रत्यक्षम्'। 5. 'न तर्हि इदानीमिदं भवति, रूपं मया दृष्टं गन्धो वा घ्रातं' इति।- 1.17.198
(बार्हस्पत्य भाष्य, 1.1.4 में ,न तर्हि इदानीमिदं भवति' पाठ मिलता है,
पर शेष नहीं। 6. 'रूपादीनामेकं कारणममूर्तनित्यमिति केचित्कल्पयन्ति।'-1.32.237 (सांख्य) 7. 'अपरे पृथिव्यादिजातिभिन्नाः परमाणवश्चतुस्त्रिव्येकगुणास्तुल्य- जातीयानां
कार्याणामारम्भका' इति।-1.32.237 (नैयायिक) इस सम्बन्ध में मेरा विचार है कि सम्भवतः स.सि. वृत्तिकार ने या तो दर्शनान्तरों या ग्रन्थान्तरों से भाव मात्र लेकर अपने शब्दों में इन मतों का उल्लेख किया है अथवा वे मूल ग्रन्थ आज प्राप्त नहीं हैं, जिनसे ये वाक्य ग्रहण किये गये हैं।
बौद्ध
इसमें तीन (3) उद्धरण ऐसे हैं जो बौद्धदर्शन से सम्बद्ध हैं :
1. 'प्रदीपनिर्वाणकल्पमात्मनिर्वाणम्' इति च। 1.0.2 2. अथवा 'क्षणिकाः सर्वसंस्काराः' इति प्रतिज्ञा हीयते।-1.12.180
यह कारिका कई ग्रन्थों में उद्धृत पायी जाती है। तत्त्वार्थवार्तिक, 1.1.57 पर 'येषां मतं' करके इसका यही प्रथम चरण 'क्षणिकाः सर्वसंस्काराः' उद्धृत