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________________ 258 Studies in Umāsvāti ये उद्धरण वृत्तिकार देवनन्दि द्वारा अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए, प्रमाणित या पुष्ट करने के लिए या अन्य-अन्य भारतीय दर्शन परम्पराओं में स्वीकृत मान्यताओं एवं सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के लिए अथवा उनका खण्डन करने के लिए ग्रन्थान्तरों से ग्रहण किये गये हैं। सर्वार्थसिद्धिगत इन उद्धरणों में वैदिक साहित्य से, दोनों दर्शन-परम्पराओं (वैदिक और अवैदिक) के साहित्य, जैन आगम एवं आगमिक साहित्य तथा व्याकरण साहित्य से उद्धरण मिलते हैं। इनमें बहुत से उद्धरण तो रचनाकाल की दृष्टि से सर्वार्थसिद्धिवृत्ति से पहले रचे गये ग्रन्थों में से हैं, परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो सर्वार्थसिद्धि के बाद लिखे गये ग्रन्थों में भी मिलते हैं, जबकि पूर्वकालीन ग्रन्थों में वे अभी तक प्राप्त नहीं हुए। ___ अर्धमागधी परम्परा (श्वेताम्बर सम्प्रदाय) में तत्त्वार्थभाष्य को स्वोपज्ञ (उमास्वातिकृत) माना जाता है। पं. नाथूराम प्रेमी आदि विद्वानों ने तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर यह सिद्ध किया है कि सर्वार्थसिद्धिवृत्ति लिखते समय पूज्यपाद देवनन्दि के समक्ष उमास्वातिकृत स्वोपज्ञ भाष्य अवश्य रहा होना चाहिए। यद्यपि देवनन्दि ने अकलंकदेव या सिद्धसेनगणि की तरह तत्त्वार्थाधिगमभाष्य के पाठ अथवा उसकी मान्यताओं का विरोध या खण्डन नहीं किया है, तथापि दोनों में अनेक वाक्य एवं पद एक से मिल जाते हैं। पं. फूलचन्द शास्त्री ने सर्वार्थसिद्धि और विशेषावश्यकभाष्य के कुछ पाठों की तुलना करके यह निष्कर्ष दिया है कि विशेषावश्यकभाष्य लिखते समय सर्वार्थसिद्धि उपस्थित रही होगी। परन्तु, यहाँ पर यह भी अनुमान किया जा सकता है कि कहीं सवार्थसिद्धिकार के सामने विशेषावश्यकभाष्य तो उपस्थित नहीं रहा। साथ ही पंडित फूलचन्दजी ने जिन वाक्यों की तुलना करके उक्त निष्कर्ष दिया है, उन वाक्यों को ध्यान से देखने पर यह नहीं लगता कि उनमें कोई विशेष समानता है। अतः इस मान्यता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अन्यान्य भारतीय लेखकों की तरह देवनन्दि का स्थितिकाल भी कम विवादास्पद नहीं है। विद्वद्गण अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार, उन्हें ईसवीय 5वीं से 7वीं शताब्दी के मध्य रखते हैं। भिन्न-भिन्न विद्वानों द्वारा स्वीकृत निष्कर्षों पर ऊहापोह करके तथा कुछ अन्य तथ्यों के आधार पर प्रो. मधुसूदन ढांकी ने देवनन्दि का समय ईसवीय 635-680 निर्धारित किया है। इस आलेख में उक्त समय सीमा को ही आधार मानकर चर्चा की गई है।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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