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उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण : एक अध्ययन 251 (6) प्रमाण निरूपण प्रमाणमीमांसा के सम्बन्ध में उमास्वाति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम पंचविध ज्ञानों को प्रमाण के रूप में प्रतिष्ठित . किया” आगमों में ज्ञान के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भेद तो प्राप्त होते हैं, किन्तु वहाँ उनके लिए 'प्रमाण' शब्द का प्रयोग नहीं है। प्रशमरतिप्रकरण में उमास्वाति ने पंचविध ज्ञानों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में विभक्त किया है, किन्तु ज्ञानों के लिए 'प्रमाण' शब्द का प्रयोग तत्त्वार्थसूत्र में ही किया गया है। इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र प्रमाणमीमांसा की दृष्टि से भी प्रथम महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें आगम-परम्परा में प्राप्त ज्ञान के विवेचन को प्रमाण के रूप में स्थापित किया गया है। उन्होंने इन्द्रिय एवं मन के सापेक्ष मति एवं श्रुतज्ञान को परो:०० तथा आत्ममात्रापेक्ष अवधि, मनःपर्याय एवं केवलज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण' कहकर जैन प्रमाण-मीमांसा को एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया है, जो आगे सिद्धसेन, अकलङ्क, विद्यानन्द, वादिराज, अभयदेव, प्रभाचन्द्र, हेमचन्द्र, वादिदेव, यशोविजय आदि दार्शनिकों के द्वारा पल्लवित एवं पुष्पित हुआ है। उमास्वति ने 'मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्'62 सूत्र के अनुसार मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध को एकार्थक प्रतिपादित कर भट्ट अकलङ्क के लिए स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क एवं अनुमान को परोक्ष प्रमाण के पृथक् भेद निरूपित करने का मार्ग खोल दिया। भट्ट अकलङ्क ने मति के पर्यायार्थक 'स्मृति' शब्द से स्मृति प्रमाण का, 'संज्ञा' शब्द से प्रत्यभिज्ञान प्रमाण का, 'चिन्ता' शब्द से तर्क प्रमाण का एवं अभिनिबोध शब्द से अनुमानप्रमाण का विकास किया।
(7) षड् लेश्या तत्त्वार्थसूत्र में षड्लेश्याओं (कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल) का कथन औदयिक भाव के इक्कीस भेदों के अन्तर्गत आया है। इसके अतिरिक्त तृतीय अध्याय में सात नरकों में अशुभतर लेश्याओं के प्रसंग में और चतुर्थ अध्याय में देवों के प्रसंग में विभिन्न लेश्याओं का कथन हुआ है।64 निर्ग्रन्थों के विवेचन में नवम अध्याय में (9.49) भी लेश्या शब्द का प्रयोग हुआ है। किन्तु तत्त्वार्थसूत्र में यह कहीं भी उल्लेख नहीं है कि ये लेश्याएँ कर्मबन्ध में भी सहायक हैं। प्रशमरतिप्रकरण में लेश्या के सम्बन्ध में स्पष्ट कथन है कि कर्म के स्थितिबन्ध
और विपाक (कर्म फल) में लेश्या विशेष से विशेषता आती है। ये छह लेश्याएँ कौनसी हैं तथा वे कर्मबन्धन में किस प्रकार सहायक हैं, इसका वर्णन करते हुए