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सर्वार्थसिद्धि में आत्म-विमर्श
उपयोगसाधनानामिह ग्रहणं, न क्रियासाधनानाम्, अनवस्थानाच्च। क्रियासाधनानामगोपाङ्गनामकर्मनिवर्तितानां सर्वेषामपि क्रियासाधनत्वमस्तीति न पंचैव
कर्मेन्द्रियाणि। - सर्वार्थसिद्धि 215, पृष्ठ 126 22. तत्त्वार्थसूत्र 2.17-18 23. सर्वार्थसिद्धि 2.18, पृष्ठ 128 24. जननमरणकरणानां प्रतिनियमादयुगपत्प्रवृत्तेश्च। ___पुरुषबहुत्वं सिद्धं त्रैगुण्यविपर्ययाच्चैव ।। - सांख्यकारिका, 18 25. तथाज्ञानस्य व्यष्ट्यभिप्रायेण तदनेकत्वव्यपदेशः ‘इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते इत्यादि'
श्रुतेः। - वेदान्तसार, साहित्य भण्डार, मेरठ, सूत्र 40, पृष्ठ 80 26. अंगुत्तरनिकायपालि, संपादक - द्वारिकादास शास्त्री, बौद्ध भारती, वाराणसी, भाग-4, पृष्ठ
408 27. आत्मत्वजातिस्तु सुखदुःखादिसमवायिकारणतावच्छेदकतया सिध्यति।__ न्यायसिद्धान्तमुक्तावली, प्रत्यक्ष खण्ड, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1977, पृष्ठ 232
233 28. सर्वार्थसिद्धि 5.3, पृ. 203 29. सर्वार्थसिद्धि 5.15 पृ. 213 30. द्रष्टव्य, स्याद्वादमंजरी, श्लोक 9 पर टीका 31. तत्त्वार्थसूत्र, 5.16 32. सर्वार्थसिद्धि, 5.16, पृष्ठ 213-214 33. उत्तराध्ययन सूत्र, 20.37 34. तत्त्वार्थसूत्र, 8.2 35. तत्त्वार्थसूत्र, 10.2 36. तत्त्वार्थसूत्र 5.21 37. सर्वार्थसिद्धि, 5.21, पृष्ठ 220 38. तत्त्वार्थसूत्र, 5.20 39. सर्वार्थसिद्धि, 5.31, पृष्ठ 230-231 40. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका, स्याद्वादमंजरी,परमश्रुत प्रभावक मण्डल, अगास, श्लोक 27 41. तदनन्तरमूवं गच्छत्यालोकान्तात्। - तत्त्वार्थसूत्र, 10.5