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________________ 32 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 45. वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य । - तत्त्वार्थसूत्र, 5.22 46. तत्त्वार्थभाष्य, सेठ मणिलाल रेवाशंकर जगजीवन जौहरी, बम्बई 1932, 5.22 47. सर्वार्थसिद्धि, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, 2009, सूत्र 5.22, पृ. 222 48. तत्त्वार्थभाष्य, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, अगास, 1992, सूत्र 5.22, पृ. 267 49. लोकप्रकाश, 28.58 50. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार, षष्ठ भाग, पृ. 165 51. सर्वार्थसिद्धि, 5.22, पृ. 222 52. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार, षष्ठ भाग, पृ. 169 53. तत्त्वार्थसूत्र, 5.41 54. अनादिरादिमांश्च। - तत्त्वार्थसूत्र, 5.42 55. क्रिया गतिः, सा त्रिविधा - प्रयोगगतिः, विस्रसागतिः, मिश्रिकेति । - तत्त्वार्थभाष्य, 5.22 56. क्रिया परिस्पन्दात्मिका । सा द्विविधा; प्रायोगिकवैनसिकभेदात् । तत्र प्रायोगिकी शकटादीनाम्, वैस्रसिकी मेघादीनाम् । - सर्वार्थसिद्धि, 5.22, पृ.223 57. परिस्पन्दात्मको द्रव्यपर्यायः सम्प्रतीयते क्रिया देशान्तरप्राप्तिहेतुर्गत्यादिभेदभृत् । । -तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार, षष्ठ भाग, पृ. 195 58. वाक्यपदीय, कालसमुद्देश, कारिका 2 पर हेलाराजकृत प्रकाश व्याख्या 59. कालो हि द्विविधः परमार्थकालो व्यवहारकालश्च । परमार्थकालो वर्तनालक्षणः | परिणामादिलक्षणो व्यवहारकालः । - सर्वार्थसिद्धि, 5.22, पृ.223 60. ववगदपण्णवण्णरसो ववगद दो गंध अट्ठफासो य । अगुरुलहुगो अमुत्तो वट्टणलक्खो य कालो त्ति।। -पंचास्तिकाय संग्रह, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, 1984, 24 61. लोकाकाशस्य यावन्तः प्रदेशास्तावन्तः कालाणवो निष्क्रियाः एकैकाकाशप्रदेशे एकैकवृत्त्या लोकं व्याप्य व्यवस्थिताः। उक्तं च - लोगागासपदेसे एक्केक्के जे ट्ठिया हु एक्कक्का। रयणाणं रासी विव ते कालाणू मुणेयव्वा । । - गोम्मटसार जीवकाण्ड, 589 एवं द्रव्यसंग्रहवृत्ति, 22 62. तत्त्वार्थराजवार्तिक, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1953, 5.40 63. नियमसार, गाथा 34, दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, वीर. नि. 2511 64. तत्त्वार्थसूत्र, 5.40 65. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राज.), 1957, शतक 6, उद्देशक 6 66. एगा कोडी सतसट्ठि लक्खा सत्तहुत्तरि सहस्सा य, दो य सया सोलहिया आवलिया इग मुहुतम्मि ।। नवतत्त्वप्रकरण, निर्णय सागर प्रेस, मुंबई, वि. सं. 1954
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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