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________________ 450 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 9. समयसार, प्रथम अधिकार, गाथा 8 . . . 10. सुत्तपिटक, खुद्दकनिकाय, खुद्दकपाठ, रतनसुत्त 11. आवश्यक सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर 1982, शरण सूत्र, पृ. 10 12. देशसर्वतोऽणुमहती।- तत्त्वार्थसूत्र 7.2 13. यदि सर्वेषां ज्ञानानां प्रमाणत्वमिष्यते प्रमाणानवस्था प्रसज्यते।- प्रमाणसमुच्चय, वृत्ति, मैसूर, 1930, पृष्ठ-11 14. न प्रमाणान्तरं शब्दमनुमानात्, तथा हि सः ।- दिङ्नाग, उद्धृत, तत्त्वसंग्रहपंजिका, बौद्ध ____ भारती प्रकाशन, वाराणसी, पृष्ठ-539 15. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 9, उद्देशक 6 16. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 2, उद्देशक 1 17. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक 13, उद्देशक 7 18. आगमयुग का जैनदर्शन, पृष्ठ 65 19. न्यायबिन्दु, 3.59 20. सन्मतितर्क, 3.69 21. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, श्लोक 225 22. सम्प्रति यापनीय सम्प्रदाय के अनुयायी उपलब्ध नही हैं। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार कसायपाहुड, षट्खण्डागम, मूलाचार, भगवती आराधना आदि अनेक ग्रन्थ यापनीय सम्प्रदाय के हैं।- द्रष्टव्य, जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय, पार्श्वनाथविद्यापीठ, वाराणसी, 1996, अध्याय 3
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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