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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
सामायिकमित्याद्यं छेदोपस्थापनं द्वितीयं तु। परिहारविशुद्धिकं सूक्ष्मसम्परायंयथाख्यातम् ।।
इत्येतत्पंचविधंचारित्रं मोक्षसाधनं प्रवरम्।।- प्रशमरतिप्रकरण, 226-227 सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय एवं यथाख्यात चारित्र का कथन दोनों ग्रन्थों में हुआ है। प्रशमरति में पंचविध चारित्र को मोक्ष का साधन कहा गया है। (iv) अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासन
कायक्लेशा बाह्यं तपः । - तत्त्वार्थसूत्र, 9.19 अनशनमूनोदरतावृत्तेः संक्षेपणंरसत्यागः ।
कायक्लेशःसंलीनतेति बाह्यं तपः प्रोक्तम्।। - प्रशमरतिप्रकरण, 175 विविक्त शय्यासन के स्थान पर प्रशमरतिप्रकरण में संलीनता शब्द प्रयुक्त हुआ है, शेष अनशन आदि बाह्य तप-नामों में समानता है। (v) प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम्।
- तत्त्वार्थसूत्र, 9.20 प्रायश्चित्तध्यानेवैयावृत्त्यविनयावथोत्सर्गः।
स्वाध्यायइतितपःषट्प्रकारमभ्यन्तरं भवति ।। - प्रशमरतिप्रकरण, 176 क्रम भेद के अतिरिक्त प्रायश्चित्त आदि आभ्यन्तर तप-नामों में पूरा साम्य है। तत्त्वार्थसूत्र में व्युत्सर्ग शब्द प्रयुक्त है। उसके स्थान पर प्रशमरति में 'उत्सर्ग' शब्द आया है। (vi)आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्ममप्रमत्तसंयतस्य।
- तत्त्वार्थसूत्र, 9.37 आज्ञाविचयमपायविचयंचसध्यानयोगमुपसृत्य। तस्माद्विपाकविचयमुपयाति संस्थानविचयंच। प्रशमरतिप्रकरण, 247 उपर्युक्त सूत्र एवं कारिका में धर्मध्यान के चार भेदों आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाक विचय एवं संस्थान विचय का उल्लेख हुआ है। अध्याय-10
(1) मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्चकेवलम्। तत्त्वार्थसूत्र, 10.1