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________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण एवं उसकी तत्त्वार्थसूत्र से तुलना वाचक उमास्वाति/उमास्वामी की दो रचनाएँ प्रसिद्ध हैं - 1. तत्वार्थसूत्र एवं 2. प्रशमरतिप्रकरण। तत्त्वार्थसूत्र संस्कृत सूत्रों में निबद्ध है तथा प्रशमरतिप्रकरण संस्कृत कारिकाओं/श्लोकों में ग्रथित है। तत्त्वार्थसूत्र जैनदर्शन का महनीय आधारभूत ग्रन्थ है, जिसमें जीव, अजीव, आसव, संवर, निर्जरा, बन्ध एवं मोक्ष- इन सात तत्त्वों के माध्यम से जैन ज्ञानमीमांसा, तत्त्वमीमांसा एवं आचारमीमांसा का सारगर्भित निरूपण हुआ है। प्रशमरतिप्रकरण में भी इन सबकी न्यूनाधिक चर्चा हुई है, किन्तु प्रशमरतिप्रकरण में प्रशम किं वा वैराग्य के प्रतिपादन को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया है। यह ग्रन्थ प्रशमसुख की वर्तमान जीवन में अनुभूति पर बल प्रदान करता है। तत्त्वार्थसूत्र एवं प्रशमरतिप्रकरण में विषयवस्तु की दृष्टि से एवं कहीं शब्दावली की दृष्टि से समानता है, तो कुछ विषयों के प्रतिपादन में दोनों ग्रन्थ भिन्नता लिए हुए हैं। तत्त्वार्थसूत्र में जहाँ जीवादि तत्त्वों की संख्या सात दी गई है वहाँ प्रशमरतिप्रकरण में इनकी संख्या नौ है। प्रशमरतिप्रकरण कल्प्य-अकल्प्य, आत्मा के आठ प्रकार, अष्टमद, षड्लेश्या, शास्त्र-लक्षण आदि विभिन्न विषयों की विशिष्ट चर्चा करता है। इस आलेख में प्रशमरतिप्रकरण के कर्तृत्व तथा तत्त्वार्थसूत्र से उसके साम्य एवं भेद की संक्षेप में चर्चा की गई है। प्रशमरतिप्रकरण के कर्ता एवं टीकाकार संस्कृत कारिकाओं में आबद्ध प्रशमरतिप्रकरण जैन अध्यात्मविद्या का उत्कृष्ट ग्रन्थ है। इसमें कषाय-कलुषित जीव के निर्मल एवं मुक्त होने का मार्ग सम्यक् रीति से निरूपित है। प्रशमरतिप्रकरण निर्विवाद रूप से तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता वाचक उमास्वाति की रचना मानी जाती है। पं. सुखलाल संघवी तत्त्वार्थसूत्र की प्रस्तावना में प्रशमरति को उमास्वाति की कृति मानने में सन्देह का अवकाश नहीं मानते (तत्त्वार्थसूत्र, प्रस्तावना, पृ. 18)। पं.कैलाशचन्द्र शास्त्री ने भी जैन साहित्य का इतिहास लिखते हुए प्रशमरति को उमास्वाति की ही कृति माना है (जैन साहित्यका इतिहास, भाग-2, पृ.375)। डॉ. मोहनलाल मेहता एवं प्रो. हीरालाल कापड़िया ने भी वाचक उमास्वाति को ही प्रशमरति का रचयिता स्वीकार किया है (जैन
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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