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________________ 354 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन मरणगुण पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है। ऋषिभाषित प्रकीर्णक के तेवीसवें अध्ययन में भी मरण की चर्चा है। वीरभद्र (10वीं शती) की आराधनापताका, अभयदेवसूरि (11वीं शती) का आराधना प्रकरण, जिनभद्र का कवचप्रकरण एक अज्ञातकर्तृक आराधनापताका तथा पर्यन्ताराधना आदि अनेक आराधनाएं भी प्रकीर्णकों के रूप में स्वीकार की गई हैं। इस प्रकार प्रकीर्णकों की विषयवस्तु में मरण अथवा समाधिमरण को प्रमुख स्थान मिला है। प्रकीर्णकों में निरूपित समाधिमरण के वैशिष्ट्य को जानने से पूर्व यह विचार कर लिया जाय कि अंग-आगमों में इसके सन्दर्भ में क्या विवेचन हुआ है। समवायांगसूत्र में मरण के 17 प्रकार निरूपित हैं- आवीचिमरण, अवधिमरण आदि।' इन सतरह प्रकारों में बालमरण, पंडितमरण, बालपंडितमरण, केवलिमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण और पादपोपगमन** मरण भी समाहित हैं। ये भेद मरण के समाधिरूप एवं असमाधिरूप दोनों का प्रतिपादन करते हैं । समवायांगसूत्र में ही समाधि के दस स्थानों का कथन है, उनमें केवलिमरण को भी समाधि का एक स्थान माना गया है। यह केवलिमरण व्यक्ति को सब प्रकार के दुःखों से रहित कर देता है, इसलिए समाधिरूप है। भगवतीसूत्र में मरण के बालमरण एवं पण्डितमरण ये दो भेद बतलाकर बालमरण के वलयमरण, वशार्त्तमरण आदि 12 भेद किए गए हैं जो मरण के विभिन्न निमित्तों के द्योतक हैं, यथा गिरिपतन, तरुपतन, जल प्रवेश, अग्नि प्रवेश, विषभक्षण आदि। वहाँ पंडितमरण के प्रायोपगमन एवं भक्त प्रत्याख्यान ये दो भेद किए गए हैं। इंगिनीमरण*** का समावेश वहाँ भक्तप्रत्याख्यान में कर लिया गया है।' स्थानाङ्गसूत्र के द्वितीय स्थान में वलयमरण, वशार्त्तमरण, निदानमरण, तद्भवमरण, गिरिपतनमरण, तरुपतनमरण, जलप्रवेशमरण, अग्निप्रवेशमरण, विषभक्षणमरण एवं शस्त्रावपाटनमरण को भगवान् महावीर के द्वारा अवर्णित, ** जैन आगम साहित्य में प्रस्तुत शब्द के तीन रूप मिलते हैं और ये तीनों ही रूप समानार्थक हैं- 1. पादपोपगमन, 2. पादोपगमन और 3. प्रायोपगमन । *** अवधेय है कि जैन आगम साहित्य में प्रस्तुत शब्द के तीन रूप मिलते हैं और ये तीनों ही रूप समानार्थक हैं- 1. इंगिनीमरण, 2. इंगितमरण और 3. इंगिणीमरण ।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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