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जैनागम साहित्य में अहिंसा हेतु उपस्थापित युक्तियाँ
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पि चयोवचइयं, इमं पि विप्परिणामधम्मयं एयं पि विप्परिणामधम्मयं। - आचारांगसूत्र,
1.1.5, सूत्र-45, पृष्ठ-26-27 15. सूत्रकृतांग, 2.1.679, पृष्ठ-499 16. दशवैकालिक, 4.1, पृष्ठ-76 17. दशवैकालिक, 4.8, पृष्ठ-79 18. दशवैकालिक, 4.9, पृष्ठ-80 19. ज्ञाताधर्मकथा, 1.5, शैलक अध्ययन, पृष्ठ-171,आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर,
द्वितीय संस्करण, 1989 20. खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ। पल्हायणभावभुवगए य सव्व-पाण-भूय-जीव
सत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ।-उत्तराध्ययनसूत्र, 29.18, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर,
तृतीय भाग, 1989 21. आचारांग सूत्र, 1.3.4, पृष्ठ-113 22. आचारांग सूत्र, 1.1.2.13, पृष्ठ-9 23. (अ) बह्वाारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः। - तत्त्वार्थसूत्र, 6.16-पार्श्वनाथ विद्यापीठ,
__ वाराणसी, 1985 (ब) अल्पारम्भपरिग्रहत्वं स्वभावमार्दवार्जवं च मानुषस्या-तत्त्वार्थसूत्र, 6.18
ओघनियुक्ति, 747-749, नियुक्तिसंग्रह, श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला, जामनगर, 1989 भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरहंतपन्नत्तस्स आराहणयाए अब्बुढेइ। - उत्तराध्ययन सूत्र, 29.51-सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, तृतीय भाग, 1989 प्रश्नव्याकरण सूत्र, 2.1.108, पृष्ठ-165
सूत्रकृतांग, 1.1.1.3, पृष्ठ-7 28. उत्तराध्ययन सूत्र, 6.7, पृष्ठ-208
सूत्रकृतांग, प्रथम श्रुत स्कन्ध, अध्ययन 1, उद्देशक 4, गाथा 9 30. आचारांगसूत्र, 1.4.2, सूत्र 139, पृष्ठ-126, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर,
द्वितीय संस्करण, 1989 31. प्रश्नव्याकरण सूत्र, 2.1.108, पृष्ठ-165 32. आचारांग सूत्र, 1.4.3.140, पृष्ठ-132 33. सूत्रकृतांग, 1.7.5, पृष्ठ-333