________________
308
जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
उपलब्ध हैं। यह आगम जीवन को भीतर एवं बाहर से अहिंसक बनने के उपायों का पथ प्रशस्त करता है। अतः आचारांगसूत्र अहिंसा के शाश्वत प्रतिपादन की दृष्टि से विश्व स्तर पर समादरणीय है। सन्दर्भ:1. सव्वे पाणा पियाउया सुहसाता दुक्खपडिकूला अप्पियवधा पियजीविणो जीवितुकामा।
सव्वेसिं जीवितं पियं।-आचारांग सूत्र आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर, चतुर्थ संस्करण,
2010, 1.2.3 सूत्र 78, 2. से बेमि- जे य अतीता जे य पडुप्पण्णा जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंता ते सव्वे
एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं पस्वेंति-सवे पाणा सब्वे भूता सव्वे जीवा, सब्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेतव्वा, ण परिघेत्तव्वा, ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोयं खेतण्णेहिं पवेदिते।-आचारांग सूत्र, आगम
प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1.4.1, सूत्र 132 3. तं जहा- उठ्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा, उवट्ठिएसु वा अणुवट्ठिएसु वा, उवरतदंडेसु वा।
अणुवरतदंडेसु वा सोवधिएसु वा अणुवहिएसु वा, संजोगरएसु वा असंजोगरएसु
वा।।-आचारांगसूत्र, 1.4.1, सूत्र 132 4. आचारांगसूत्र, 1.1.5, सूत्र 45 5. आचारांग सूत्र 1.1.4 6. आचारांग सूत्र, 1.3.2, सूत्र 119 7. आचारांग सूत्र 1.2.2, सूत्र 74 8. (i)आचारांग सूत्र 1.3.4, सूत्र 129 ___(ii)अन्यत्र भी कहा है- एत्थ सत्थे पुणो पुणो।-आचारांग सूत्र 1.2.2, सूत्र 72 9. आचारांग सूत्र, 1.5.1, सूत्र 147 10. आचारांगसूत्र, 1.1.3 सूत्र 25 11. बृहत्कल्पसूत्र, उद्देशक 1, गाथा 10-14 12. अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति।-पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, श्लोक 44 13. तत्त्वार्थसूत्र, 7.8 14. एषा हिंसा प्राणिनश्चित्तं ग्रथ्नाति तेनाऽस्ति ग्रंथिः, एषा मूढतां नयति, तेनास्ति मोहः, एषा
मृत्युं नयति तेन मारः, एषा विपुलां वेदनां नयति तेन नरकः।- आचारांगभाष्य,
आचार्यमहाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूं, 1994, 1.2.25, पृष्ठ 36 15. अप्पेगे हिंसिंसु मे त्ति वा, अप्पेगे हिंसंति वा, अप्पेगे हिंसिस्संति वा णेगे वधेति।- आचारांग
सूत्र, 1.1.6, सूत्र 52