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अनेकान्तवाद का स्वरूप और उसके तार्किक आधार
सकता है । फिर विरोध, संशय, व्यतिकर आदि दोषों की आपत्ति का स्वतः परिहार
सकता है
सन्दर्भ:
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1. मीमांसाश्लोकवार्तिक, वनवाद, 22, रत्ना पब्लिकेशन, कमच्छा, वाराणसी, 1978
2. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, 22, स्याद्वादमंजरी, परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद्
139
राजचन्द्र आश्रम, अगास, 1979
3. स्याद्वादमंजरी, अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, श्लोक 22 की टीका, पृष्ठ 200
4. अष्टसहस्री, द्रष्टव्य कारिका 59-60 की टीका, सम्पा, बंशीधर नाथारंग जी गांधी, अकलूज, सोलापुर, 1915
5. आप्तमीमांसा, 59-60, श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन संस्थान, नरिया वाराणसी
6. (i) सन्मतितर्क अंग्रेजी संस्करण 1.12, लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या
मन्दिर अहमदाबाद, पुनर्मुद्रित, 2000
(ii) इसी प्रकार का एक अन्य श्लोक है
द्रव्यं पर्याय वियुतं, पर्याया द्रव्यवर्जिताः ।
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कदा केन किंरूपा, दृष्टा मानेन केन वा ।। स्याद्वादमंजरी टीका, अगास, पृष्ठ 19 7. प्रमाणमीमांसा 1.1.30, श्री तिलोक रत्न जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी,
अहमदनगर,
1970
8. प्रमाणमीमांसा 1.1.30 की स्वोपज्ञवृत्ति
9. प्रमाणमीमांसा 1.1.30 की स्वोपज्ञवृत्ति
10. प्रमाणमीमांसा 1.1.30 की स्वोपज्ञवृत्ति
11. प्रमाणवार्तिक, बौद्ध भारती प्रकाशन, वाराणसी 3. 181-183
12. ब्रह्मसूत्र शाङ्करभाष्य, अध्याय 2, पाद 2, सूत्र 33
13. तत्त्वसंग्रह, बौद्ध भारती प्रकाशन, वाराणसी, श्लोक 1709-1784
14. द्रष्टव्य हेतुबिन्दुटीका, सम्पा. पं. सुखलाल संघवी एवं मुनि जिनविजय, गायकवाड ओरियण्टल सीरीज, बडौदा, 1949
15. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, शतक 9, उद्देशक 33
16. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, शतक 2, उद्देशक 1, स्कन्धक प्रकरण
17. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका, 25
18. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका, 5
19. स्याद्वादमंजरी, अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका, श्लोक 23 की टीका