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________________ अनेकान्तवाद का स्वरूप और उसके तार्किक आधार 129 द्रव्यपर्यायात्मक स्वरूप से वर्णन किया है। वे पर्याय से रहित द्रव्य एवं द्रव्य से रहित पर्याय की संभावना का प्रतिषेध करते हुए कहते हैं-दव्वं पज्जयविउयं, दव्वविउत्ता य पज्जवा नत्थि।। अर्थात् पर्याय से रहित द्रव्य एवं द्रव्य से रहित पर्याय नहीं है। आचार्य हेमचन्द्र ने द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु को ही प्रमाण का विषय प्रतिपादित किया है - प्रमाणस्य विषयो द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु।' द्रव्य की व्युत्पत्ति करते हुए प्रमाणमीमांसा 1.1.30 के उपर्युक्त सूत्र की स्वोपज्ञवृत्ति में आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है-'द्रवति तांस्तान्पर्यायान्गच्छतिइति द्रव्यं धौव्यलक्षणम्'। जो विभिन्न पर्यायों को प्राप्त करता रहता है, वह द्रव्य है। यह ध्रौव्यस्वरूप वाला है । यहाँ इसे वे ऊर्ध्वतासामान्य भी कहते हैंपूर्वोत्तरविवर्तवय॑न्वयप्रत्ययसमधिगम्यमूर्ध्वतासामान्यमिति यावत्॥"पूर्व पर्याय के नष्ट होने एवं उत्तर पर्याय के उत्पन्न होने पर भी, जिसके कारण उस वस्तु में एकाकार (अन्वय) की प्रतीति होती है उस द्रव्य को ऊर्ध्वता सामान्य कहा गया है। पर्याय की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है-"परियन्त्युत्पादविनाशधर्माणो भवन्तीति पर्यायाविवर्ताः" जो उत्पाद-विनाश धर्म वाले हैं वे पर्याय हैं। विरोधी धर्मों का समन्वय वस्तु के द्रव्यपर्यायात्मक स्वरूप के आधार पर ही उसे नित्यानित्यात्मक, एकानेकात्मक, भेदाभेदात्मक, सामान्यविशेषात्मक आदि भी कहा गया है। द्रव्य की अपेक्षा से वस्तु में नित्यता, एकता, अभेदता एवं सामान्य पाया जाता है तथा पर्याय की अपेक्षा से वह अनित्य, अनेक, भिन्न एवं विशेष होती है। इस प्रकार जैन दर्शन में वस्तु को विरोधी गुणों या धर्मों से भी युक्त स्वीकार किया गया है । अनेकान्तदृष्टि वस्तु में इन विरोधी गुणों को स्वीकार करके भी अपेक्षा विशेष के द्वारा विरोध का परिहार कर देती है, यह इस दृष्टि का वैशिष्ट्य है। अनेकान्तवाद जैनदर्शन का सिद्धान्त पूर्व चर्चा के अनुसार अनन्तधर्मात्मकता अन्य दर्शनों को भी मान्य है, किन्तु अनेकान्तवाद जैन दर्शन का प्रमुख सिद्धान्त बन गया। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। पण्डित सुखलाल जी के शब्दों में “सामान्य रूप से दार्शनिक क्षेत्र में यह
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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