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षष्ठोऽध्यायः
१ (१२) दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनान्यात्मपरोभयस्था
न्यसद्व द्यस्य । दुःख, शोक, पश्चाताप, रुदन. वध और परिदेवन (हृदयफाट रुदन, जिससे निर्दय को भी दया उत्पन्न हो ), ये खुद को करने, दूसरे को उत्पन्न करने अथवा दोनों में उत्पन्न करने ये असाता वेदनीय के आश्रव हैं। (१३) भूतव्रत्यनुकम्पा दानं सरागसंयमादियोगः क्षान्तिः
शौचमिति सद्यस्य । प्राणी मात्र की और व्रतधारियों की ज्यादा अनुकम्पा (दया) दान, सराग संयम, ( रागवाला चारित्र ), देशविरति चारित्र, बालतप, सक्रिया रूप योग, क्षमा और शौच, इस प्रकार साता वेदनीय के आश्रव-बंध हेतु हैं। (१४) केवलिश्र तसङ्घधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ।
केवली भगवान्, श्रुत, संघ, धर्म और ( चार प्रकार के ) देव का अवर्णवाद (निंदा) ये दर्शन मोहनीय के आश्रव के हेतु हैं। (१५) कषायोदयात्तीव्रात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ।
कषाय ( सोला कषाया और नव नोकषाय ) के उदय से पैदा हुवा तीव्र आत्मपरिणाम वह चारित्र मोहनीय का आश्रव है। (१६) बह्वारम्भपरिग्रहत्वं च नारकस्यायुषः ।
बहोत आरम्भ परिग्रहपणा ये नारक आयुष्य का आश्रव है। (१७)
माया तैर्यग्योनस्य । माया तिर्यच योनी का आयुष्य का भाव है।