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श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्
आपस में हिताहित के उपदेश से सहायक होना जीवों का प्रयोजन हैं.
(२२) वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य ।
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वर्तना, परिणाम, क्रिया परत्व ज्येष्ठपना और अपरत्व कनिष्ठपना ये काल का कार्य है.
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सब पदार्थों की काल के आधार पर जो वृत्ति वह वर्तना जाननी यानी प्रथम समयाश्रित उत्पत्ति स्थिति वह वर्तना.
अनादि और आदि । इस तरह दो प्रकार के परिणाम है. क्रिया यानी गति वह तीन प्रकार की प्रयोग गति विश्रसा गतिऔर मिश्रसा गति, परत्वापरत्व तीन प्रकार का है, प्रशसाकृत, क्षेत्रकृत और कालकृत. जैसे- कि धर्म और ज्ञान पर हैं, अधर्म और श्रज्ञान अपर है वह प्रशंसाकृत, एक देश काल में स्थित पदार्थों में जो दूर है वह पर, और जो नजदीक है वह अपर, क्षेत्रकृत जानना. सो वर्ष वाला सोला वर्ष वाले की अपेक्षा ( मुकाबला ) से पर, और सोला वर्ष वाला सो वर्ष वाले की अपेक्षा से अपर, यह कालकृत. स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ।
(२३)
स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण वाले पुद्गल होते हैं.
स्पर्श आठ प्रकार का है-कर्केश, सुरवाला, भारी, हल्का, शीत, उष्ण, स्निग्ध (चिकना ) और लूखा. रस पांच प्रकार का है-कडवा, तीखा, कषायला, खट्टा और मधुर गन्ध दो प्रकार का है - सुरभि (अच्छा ) और दुरभि ( खराब ) । वर्ण पांच प्रकार का है - काला, नीला (हरा), पीला और सफेद .
लाल,
(२४) शब्दबन्ध सौम्यस्थौन्य संस्थान भेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च ।