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द्वितीयोऽध्यायः
२५ तैजस और कार्मण पहले पहले से अनन्त अनंत गुणे हैं यानि औदारिक से वैक्रिय के प्रदेश असंख्यात गुणे, वेक्रिय से आहारक के प्रदेश असंख्यात गुणे है और आहारक से तैजस के प्रदेश अनंत गुणे और तैजस से कार्मग के प्रदेश अनंत गुणें हैं।
(४१) अप्रतिघाते । ये दो प्रतिघात (बाधा) रहित हैं यानी लोकान्ततक जानें आने में कोई पदार्थ उनको नहीं रोक सकता है।
(४२) अनादिसम्बन्धे च । फिर ये दोनों शरीर जीव के साथ अनादि काल से सम्बन्ध वाले हैं । एक आचार्य कहते हैं कि कार्मण शरीर ही अनादि संबंध वाला है।
तेजस शरीर तो लब्धि की अपेक्षा से है, वह लब्धि सबको नहीं होती। क्रोध से श्राप देने को और प्रसाद से आर्शीवाद देने को सूर्य चन्द्र के प्रभा के माफिक तैजस शरीर है।
. (४३) सर्वस्य । ये दोनों शरीर सब संसारी जीवों के होते हैं। (४४) तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्याऽऽचतुर्यः ।
इन दोनों शरीरों को शुरु में लेकर चार तक के शरीर एक साथ एक जीव को हो सकते हैं। ___ यानि किसी को तैजस, कार्मण किसी को तैजस, कार्मण और
औदारिक; किसी को तैजस, कार्मण, वैक्रिय, किसी को तैजस, कार्मण, औदारिक, वैक्रिय, किसी को तेजस, कार्मण, औदारिक, आहारक, होते हैं । एक साथ पांच नहीं होते क्योंकि आहारक और वैक्रिय, एक साथ नहीं होते।