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नवमोऽध्यायः पाँच मूलगुण ( पांच महाव्रत ) और रात्रिभोजन विरमण इन छ में के किसी भी व्रत को दूसरे की प्रेरणा और आग्रह से दूषित करने वाला पुलाक होता है। कितनेक आचार्य कहते हैं कि सिर्फ मैथुन विरमण को पुलाक दूषित करते हैं. बकुश दो प्रकार के हैं (१) उपकरण में ममता रखने वाले यानी बहुत मूल्य वाले उपकरण इख करके ज्यादा इकट्ठ करने की इच्छा हो बह उपकरण बकुश, और शरीर शोभा में जिनका मन तत्पर है ऐसा हमेशा विभषा (शोभा) करने वाला शरोरवकुश कहलाता हैं। प्रतिसेवना कुशील हो वह मूलगुण को पाले और उत्तरगुण में कहीं कहीं विराधना करता है। कषाय-कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक इन तीन निर्ग्रन्थों को किसी जात का प्रतिसेवनादूषण नहीं होगा। __ सब तीर्थकरों के तीर्थ में पाँचों प्रकार के साधु होते है । एक आचार्य मानते हैं कि- पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना, कुशील ये तीर्थ में नित्य होते हैं: बाकी के साधु तीर्थ की मौजूदगी में या तीर्थ मौजूद न हो तब होते हैं।
लिंग दो प्रकार के हैं द्रव्य (रजोहरण, मुहपत्ति वगेरा), और भाव (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) सब साधु भाव लिंग से जरूर होते हैं। द्रव्य लिंग से भजना जाननी (यानी होते हैं अथवा न भी होते हैं। मरुदेवी वगेरा की तरह थोड़े काल वाले को हो या न हो, और दीर्घ काल वाले को जरूर हो।
पुलाक को पिछली तीन लेश्या होती है। बकुश और प्रतिसेवना कुशील को छ ही लेश्या होती है, परिहारविशुद्धिचारित्र वाले कषायकुशील को पिछली तीन लेश्या होती हैं, सूक्ष्मसंपराय वाले कषायकुशील को तथा निर्गन्ध और स्नातक को सिर्फ शुक्ल लेश्या होती है। योगी शैलेशी प्राप्त तो भलेशी होता है.