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तत्त्वार्थसूत्रमतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ॥३१॥ सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् ॥ ३२॥ नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूता नयाः ॥३३॥
इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्र प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥
औपशमिकक्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वमतिश्रतिज्ञान रु अवधिके तीन विपर्जय ज्ञान । कुमति कुश्रति कुअवधि लखि क्रम क्रम ही पहिचान॥१४॥ सैत असत्य निर्नय बिना इच्छाकर उनमत्त । ग्रहण करै जो ज्ञानको सोई विषय अनित्त ॥१५॥ सात भेद नयके कहे नैगम संग्रह जान । तीजी नय व्यवहार है द्रव्यार्थिक त्रय मान ॥१६॥ चौथी नय ऋजुसूत्र है शब्द पांचमी वीर । समभिरूढ़ वंभूत नय छटी सातमी धीर ॥१७॥ पर्जय अर्थिक चार नय पिछिली कही सु जान । प्रथम तीन नय जो कहीं सो द्रव्यार्थक जान ॥१८॥
ज्ञानरु दर्शन तत्त्व नय लक्षण भेद प्रमाण । इन सबको बरणन कियो पहिलो अध्या जान ॥ १९ ॥
३२ आनित्त - विपरीत । ३३ वंभूत = एबंभूत ।