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भाषा छंद सहित । मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ॥ १॥ सकषायत्वाजीव कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते स बन्धः ॥२॥ प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः॥३॥ आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्ना मगोत्रान्तरायाः ॥४॥ पञ्चनवद्यष्टाविंशतिचतुर्दिच
छन्द विजया तथा सवैय्या। मिथ्यात पंच अरु बारह अविरत पंद्रह प्रमाद कषाय पचीशा। योगके पंद्रह भेद लखौ यह पांच हैं बन्धके भेद मुनीशा ॥ सहित कषाय सु जीव गहे क्रम रूपी पुदगल योग सुरीशा । ताहीको नाम सु बन्ध कहो त्रैलोक्यपती अदभुत जगदीशा॥१॥
चौपाई। सो बन्धन है चार प्रकार । प्रकृतिबन्ध इस्थिति निरधार ॥ अनूभाग अरु तुर्य प्रदेश। या विध सूत्रमाहिं लख वेश ॥२॥ पहिले विधिको है जो भेद । ज्ञानावर्णी पांच विभेद ॥ दर्शनआवर्णी नव जान । वेदनि दोय प्रकार बखान ॥३॥ अट्ठाईस मोहनी वीर । आयु चार परकार सु धीर ॥ नाम कर्मके हैं व्यालीस । गोत्र दोय भाषे जगदीश ॥ ४ ॥ अंतरायके पांच निहार । इह विध कर्म आठ परकार ॥