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ॐ
नमः सिद्धेभ्यः । अथ
आचार्यश्रीमदुमास्वामिविरचितम् मोक्षशास्त्रम् ।
अपरनाम
( तत्त्वार्थ सूत्रम् )
त्रैकाल्यं द्रव्यषट्कं नवपदसहितं जीवषट्कायलेश्याः पंचान्ये चास्तिकाया व्रतसमितिगतिर्ज्ञानचारित्रभेदाः । इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवनमहितैः प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः प्रत्येति श्रद्दधाति स्पृशति च मतिमान् यः स वै शुद्धदृष्टिः ॥ १ ॥
तत्वार्थसूत्रकी भाषाछंद ।
छप्पय ।
• तीनकाल षटद्रव्य पदारथ नब सरधानो । जीबकाय पट जान लेश्या षट ही मानो || अस्तिकाय हैं पांच और व्रत समति सुगत हैं । ज्ञान और चारित्र इते श्रुत मोक्ष कहत हैं
||
* यह श्लोक न तो मूल तत्त्वार्थसूत्रका है न उसकी किसी टीकाका हे और न इस. श्लोक के साथ तत्वार्थ सूत्रका कोई संबंध हूं इसलिये तत्त्वार्थसूत्र के पाठ में इसे शामिल करना नितांत अनुचित है | लाला छोटेलालजीने इसका छप्पय बनाया है इसलिये पाठकों को मिलान करनेकेलिये महीन टाइपमें दे दिया है।