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________________ ૪૧૨ સૃષ્ટિવાદ અને ઈશ્વર ईश्वर किसी के पाप या पुण्य को अपने ऊपर नहीं ओढ़ता। अज्ञानद्वारा ज्ञान ढक जाने से लोग मोह में फँस जाते हैं । टिप्पणी-अज्ञान से, 'मैं करता हूँ' इस वृत्ति से मनुष्य कर्मबन्धन बाँधता है। फिर भी वह भले बुरे फल का आरोप ईश्वर पर फरता है, यह मोहजाल है। (भगवद्गीता का अनुवाद-कर्मसंन्यासयोग) श्रीमद् परमहंस सोऽहं स्वामी का अभिप्राय ॥ जो वेद को ब्रह्म से उत्पन्न मानता है, उसके लिये बाईबिल को ईश्वर के द्वारा निर्माण किया हुआ न मानना, अथवा जो लोग बाई बिल को ईश्वर की बनाई हुई मानते हैं, उनके लिये वेद का ब्रह्म से उत्पन्न होना न मानना युक्तिसंगत नहीं है। ‘जगत के कर्ता ने विविध देशों में विविध नामों से प्रकट होकर विभिन्न दोशों में देश, काल और पात्र के भेदसे अलग अलग धर्म का उपदेश किया है', इस पर जो लोग विश्वास करते हैं, क्या वे विविध देशों के सृष्टितत्त्व विषयक मतों में जो भेद पड़ गया है, उस का निर्णय कर सकते हैं ? (भगवद्गीता की समालोचना ) ( अनु० गोपालचंद्र वेदान्तशास्त्री पृ. १८)
SR No.022511
Book TitleSrushtivad Ane Ishwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherJain Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1940
Total Pages456
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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