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આર્યસમાજ-સૃષ્ટિ
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व्यादि जड और जीवसे अतिरिक्त है वही पुरुष इस सब भूत, भविष्यत् और वर्तमानस्थ जगत्को बनानेवाला है।
(स० प्र० हिं० पृ० २१८) ध्यान तिभिरमा२७२ अनुसार-अर्थ-(इदं) यह (यत्)जो (भृतं) अतीत ब्रह्म संकल्प जगत् है (च) और (यत्) जो (भाव्य) भविष्य संकल्प जगत् है (उत) और (यत्) जो (अन्नेन) बीज या अन्नपरिणामवीर्यसे (अतिरोहति) वृक्ष नर पशु आदि रूपसे प्रकट होता है (सर्व) वोह सब (अमृतत्वस्य) मोक्षका (ईशानः) स्वामी (पुरुषः) नारायण (एव) ही है।
(द० ति० भा० पृ० २५३) (3) यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति । ___यत्प्रयन्त्याभिसंविशन्ति तद्विजिज्ञासस्व तद्ब्रह्म ॥५॥
(तै० उप० भृगुवल्ली० अनु० १) सत्यार्थ प्रशानुसार-मर्थ-जिस परमात्माकी रचनासे ये सब पृथिव्यादि भूत उत्पन्न होते हैं जिससे जीव और जिसमें प्रलयको प्राप्त होते हैं, वह ब्रह्म है, उसके जाननेकी इच्छा करो।
(स० प्र० हिं० पृ० २१८) यानं तिभिरमा२४२ अनुसा२-अर्थ-जिससे यह प्राणी उत्पन्न होते और उसीसे जीते और अन्तमें उसीमें प्रवेश करते हैं उसेही ब्रह्म जानो ।
(द० ति० भा० पृ० २५४) सत्यार्थ पृष्ट २३४मा “मनुष्या ऋषयश्च ये।ततो मनुष्या अजायन्त” ॥ ६२९५ यानुन नामथा त यु छ, ५९ દયાનંદ તિમિરભાસ્કરકાર કહે છે કે આ વાક્ય યજુર્વેદમાં ક્યાંય ५९४ नथा. , शतपयवाझएभा 'ततो मनुष्या अजायन्त' में વાક્ય એક ઐતિ અન્તર્ગત છે. પણ તેને તે સ્વામીજી પ્રમાણુરૂપ