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लोक का आकार
लोक नीचे विस्तृत है, मध्य में संकरा है और ऊपर-ऊपर मृदंगाकार है। लोक त्रिशरावसंपुट आकार वाला है। तीन सिकोरों में से प्रथम सिकोरे को जमीन पर उल्टा, दूसरे को उस पर सीधा और तीसरे सिकोरे को उस पर पुनः उल्टा रखने से जो आकार बनता है, वही लोक का आकार है। जैन शास्त्रों में इसे त्रिशरावसंपुटाकार या सुप्रतिष्ठिक संस्थान कहा गया है। निम्न चित्र के माध्यम से हम लोक के आकार को समझ सकते हैं
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- ऊर्ध्वलोक
- मध्यलोक
- अधोलोक
___पांव फैलाकर और कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हुए पुरुष के आकार की उपमा भी लोक के आकार के लिए दी जाती है। लोक की स्थिति
प्रश्न होता है यह दृश्यमान जगत् किस पर ठहरा हुआ है। पुराणों में शेषनाग, कच्छप आदि पर यह विश्व अवस्थित है, ऐसी विभिन्न अवधारणाएँ हैं। भगवतीसत्र के अनुसार गौतम ने भगवान महावीर से प्रश्न पूछा-भंते! लोक की स्थिति कितने प्रकार की है? भगवान ने कहा-लोक-स्थिति के आठ प्रकार हैं