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धातकी खण्ड और अर्धपुष्कर ये ढ़ाई-द्वीप हैं। यद्यपि मध्यलोक का क्षेत्र विशाल है किन्तु ऊर्ध्वलोक और अधोलोक की तुलना में इसका क्षेत्रफल शून्य के बराबर है। 3. अधोलोक
इस समतल भूमि के नीचे नौ सौ योजन की गहराई के बाद अधोलोक का प्रारम्भ होता है। इसका आकार औधे किये हुए सकोरे के समान है। इसमें नीचे-नीचे क्रमशः सात पृथ्वियां हैं, जो सात नारकों के नाम से जानी जाती हैं। वहाँ नारक के जीव निवास करते हैं। नारकों के निवास को नरक भूमि कहते हैं। ये सात नरक भूमियाँ समश्रेणी में न होकर एक-दूसरे के नीचे हैं। इनकी लम्बाई-चौड़ाई भी समान नहीं है। पहली नरक भूमि से दूसरी नरक भूमि की लम्बाई-चौड़ाई अधिक है। दूसरी से तीसरी की, इस प्रकार उत्तरोत्तर लम्बाई-चौड़ाई अधिक होती गई है। ये सातों नरक भूमियां एक-दूसरे के नीचे हैं, परन्तु बिल्कुल सटी हुई नहीं हैं। इनके बीच में बहुत अन्तर है। नरक के जीवों को जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त भयंकर वेदना होती है। पल भर भी उन्हें चैन नहीं मिलता। लोक का परिमाण
जैन दर्शन के अनुसार लोक चौदह रज्जु परिमाण है। ऊर्ध्वलोक सात रज्जु से कुछ अधिक का है। अधोलोक सात रज्जु से कुछ कम है। मध्य लोक अठारह सौ योजन का है। इन तीनों को मिलाकर चौदह रज्जु होता है। यह चौदह रज्जु का लोक सातवें नरक-तमस्तमा के नीचे से प्रारम्भ होकर सिद्धशिला के अन्तिम छोर तक है। रज्जु का अर्थ रस्सी होता है, पर यह कोई छोटी-मोटी रस्सी नहीं अपितु एक माप है। असंख्य द्वीप और असंख्य समुद्र समा जाएँ उतना बड़ा एक रज्जु होता है।