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* गुणपर्याय से युक्त द्रव्य
उत्तराध्ययन की परिभाषा में द्रव्य को केवल गुणों का आश्रय माना गया है किन्तु बाद में द्रव्य की परिभाषा में गुण के साथ पर्याय को भी जोड़ा गया। आचार्य उमास्वाति ने द्रव्य की परिभाषा में गुण के साथ पर्याय को जोड़ते हुए तत्त्वार्थसूत्र में लिखा-'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' अर्थात् गुण और पर्याय से जो युक्त है, वह द्रव्य है। जैन सिद्धान्त दीपिका में भी गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यम् कहकर गुण और पर्याय के आश्रय को द्रव्य कहा गया। * द्रव्य का लक्षण सत् .
तत्त्वार्थसूत्र में द्रव्य को परिभाषित करते हुए कहा गया'सत्द्रव्यलक्षणम्' द्रव्य का लक्षण सत् है और सत् उत्पाद-व्ययध्रौव्य युक्त होता है।
आचार्य कुन्दकुन्द ने द्रव्य को परिभाषित करते हुए लिखादव्वं सल्लक्खणीयं उप्पाद व्यय धुवत्त संजुत्तं।
गुण पज्जयासयं वा जं तं भण्णति सवण्णहू।। इस श्लोक में द्रव्य के तीन लक्षण हैं1. द्रव्य का लक्षण सत् है। 2. द्रव्य का लक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त है। 3. द्रव्य का लक्षण गुण-पर्याययुक्त है।
जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य से रहित पर्याय और पर्याय से रहित द्रव्य का अस्तित्व खरविषाण या बन्ध्यापुत्र की भांति होता ही नहीं है। 2. गुण की परिभाषा
द्रव्य की परिभाषा से यह स्पष्ट है कि द्रव्य में गुण और पर्याय दोनों होते हैं। गुण और पर्याय के बिना द्रव्य की कल्पना नहीं की जा सकती। गुण को परिभाषित करते हुए लिखा गया-सहभावी