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3. सम्यक् चारित्र
अध्यात्म साधना पद्धति में त्रिविध साधना को अधिक महत्त्व दिया गया है। तीनों का समन्वय रूप ही मोक्ष है। सम्यग् दर्शन और सम्यग् ज्ञान मोक्ष के कारण हैं, फिर भी चारित्र साक्षात् कारण है। मोक्ष का सर्वश्रेष्ठ अंग चारित्र है। चारित्र जैन साधना का प्राण है। जैन पारिभाषिक शब्दावली में चारित्र शब्द का अर्थ 'आचरण' किया है। पहले देखना, फिर जानना तदनन्तर इन्द्रियों के विषय तथा कषायों पर विजय प्राप्त करना ही चारित्र है। पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति की साधना सम्यक् चारित्र की साधना है।
1. ईर्या समिति-जागरूकतापूर्वक चलना ईर्या समिति है। 2. भाषा समिति-विवेक पूर्वक बोलना भाषा समिति है। 3. एषणा समिति-शुद्ध आहार की गवेषणा (खोज) करना
एषणा समिति है। 4. आदान-निक्षेप समिति-जागरूकतापूर्वक वस्त्र, पात्र आदि
उपकरण लेना और रखना आदान-निक्षेप समिति है। 5. उत्सर्ग समिति-विवेकपूर्वक मल-मूत्र आदि का उत्सर्ग _करना उत्सर्ग समिति है। 6. मनोगुप्ति-मन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना मनोगुप्ति है। 7. वचनगुप्ति-वचन की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना वचनगुप्ति
8. कायगुप्ति-शरीर की अशुभ प्रवृत्ति को रोकना कायगुप्ति
इस प्रकार सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र इस रत्नत्रय की युगपत् साधना ही मोक्षमार्ग है। किसी एक का भी अभाव होने पर व्यक्ति अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है।