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देह से युक्त रहता है तब उसे कई प्रकार के ज्ञान प्राप्त हो सकते हैं ।
मीमांसा की एक शाखा के प्रवर्तक प्रभाकर थे। प्रभाकर-मीमांसा के अनुसार प्रमाण पाँच प्रकार के हैं—प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द तथा अर्थापत्ति ।
प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान तथा शब्द की व्याख्या न्याय तथा मीमांसा में प्रायः समान है । उपमान-सम्बन्धी केवल एक भिन्नता है । मीमांसा के अनुसार उपमान नीचे लिखी विधि से होता है। कोई व्यक्ति जिसने हनुमान की मूर्ति देखी है, जङ्गल जाता है । वह जङ्गल में बन्दर देखता है और कहता है कि यह बन्दर हनुमान् के सदृश है । यह उक्ति प्रत्यक्ष के द्वारा प्रमाणित होती है । तत्पश्चात् यदि वह व्यक्ति कहे कि मैंने जो अतीत में हनुमान् देखा है, वह इस बन्दर के समान है । तो इसे हम प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं कह सकते । यह ज्ञान 'उपमान' के द्वारा होता है, क्योंकि हनुमान् वहाँ उपस्थित नहीं है।
जब हम किसी आपात विरोध का समाधान नहीं कर सकते तो हम 'अर्थापत्ति' की सहायता लेते हैं । यदि कोई मनुष्य दिन में भोजन नहीं करे
और वह मोय होता जाय तो हम 'अर्थापत्ति' से जान पाते हैं कि वह रात में अवश्य भोजन करता है । यदि कोई मनुष्य जीवित हो और घर पर न रहे तो अर्थापत्ति द्वारा ही यह जाना जा सकता है कि वह कहीं अन्यत्र है ।
मीमांसा की दूसरी एक शाखा कुमारिल भट्ट ने स्थापित की है। भाट्ट मीमांसा के अनुसार उपर्युक्त पाँच प्रमाणों के अतिरिक्त एक षष्ठ प्रमाण भी है । इस षष्ठ प्रमाण को 'अनुपलब्धि' कहते हैं । किसी घर में प्रवेश करने पर तथा चारों तरफ देख लेने पर यदि कोई व्यक्ति कहे कि इस घर में वस्त्र नहीं है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वस्त्राभाव का ज्ञान प्रत्यक्ष के द्वारा हुआ, क्योंकि किसी विषय का प्रत्यक्ष तब होता है जब उस विषय का इन्द्रिय के साथ संयोग हो । उपर्युक्त उदाहरण में वस्त्राभाव का ज्ञान हुआ है। अभाव के साथ इन्द्रिय का संयोग नहीं हो सकता । अतः अभाव का ज्ञान अनुपलब्धि द्वारा ही होता है ।
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