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________________ पर परीक्षामुख ~ इसलिए कहते हैं कि व्यतिरेकव्याप्तिमें साध्याभावही साध्य, और साधनाभाव ही साधन माना जाता है। और भी व्यतिरेकदृष्टान्ताभास होता है :विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्त तन्नापौरुषेयम्॥४६॥ भाषार्थ-पूर्वोक्त अनुमानमें, व्यतिरेक दिखाते हुए “जो अमूर्त नहीं होता है वह अपौरुषेय भी नहीं होता है" इसप्रकार उल्टा व्यतिरेक दिखा देना भी व्यतिरेकदृष्टान्ताभास है। भावार्थ-व्यतिरेकमें सर्वत्र साध्याभावमें साधनाभाव दिखाया माता है बस ; इससे उल्टा दिखानेमें बिजली श्रादिकेक साथ पूर्वकी तरह ही अतिप्रसंग होता है इसलिए वह व्यतिरेकदृष्टान्ताभास है। ... अब बालप्रयोगाभासको दिखाते हैं:-. बालप्रयोगाभासः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता ॥४६॥ - भाषार्थ-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरणा, उपनय और निगमन इन पांच अनुमानके अवयों से कितने ही कम अवयवाका प्रयोग करना बालप्रयोगाभास है अर्थात् बालकोंके लिए फँठाप्रयोग है। भावार्थ-पागे स्वयंही ग्रन्थाकार कहेंगे कि कम अवयवों वाले प्रयोगसे बालकोंको ज्ञान नहीं होसकता ; इसलिए वह प्रयोग उनके लिए प्रयोगाभास कहा जाता है। उसीको स्पष्ट करते हैं:अग्निमानयंदेशो धूमवत्वाद् यदित्यं तदित्यं यथा महानसः ॥ ६७॥ ................... . भाषार्थ-यह प्रदेश अग्निवाला है; क्योंकि धूमवाला है।
SR No.022447
Book TitleParikshamukh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Jain
PublisherGhanshyamdas Jain
Publication Year
Total Pages104
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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