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अवनिपाल की सभा के प्रसिद्ध विद्वान थे, आपका नाम पूर्व में पात्रकेसरी था, जाति के आप ब्राह्मण थे, और वैदिक धर्मपर आपकी श्रद्धा थी, उक्त राजा की अहिच्छत्र नामकी राजधानी में आप रहा करते थे। एक दिन आपको, राज सभा के ५०० ब्राह्मण विद्वानों को साथ लेकर श्री पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर को देखने का कुतूहल उत्पन्न हुआ, मन्दिर में जाकर आपने चरित्रभूषण नामक मुनि को भगवान के सम्मुख देवागम स्तोत्र का पाठ करते देखा। यह स्तोत्र आपको बहुत पसंद आया, और आपने उक्त स्तोत्र को पुनः पढ़ने के लिये मुनिराज से इच्छा प्रकट की। एक बार सुनने से ही यह स्तोत्र आपको कंठ होगया, और इस का अर्थाश विचारते ही आपकी वैदिक धर्म से श्रद्धा उठ गई, व जैनधर्म ने. आपके हृदय पर अपना अटल साम्राज्य जमा लिया । उसी समय से आपका चिन जैनमत में कहे हुए जीव, अजीव, आदिक तत्वों के विचार में निमग्न रहने लगा,
और इस विषय के ग्रन्थ बनाने की आपकी उत्कट इच्छा होने लगी, जगत के जीवों को वास्तविक शांति पहुंचाने में इस धर्म का प्राप्त करना, आपके पास अनुपम अमृत होगया। इसके द्वारा आपने बड़े २ राजाओं की सभाओं में शास्त्रार्थ करके बहुत से विद्वानों के हृदय से युक्तिशून्य विचार निकाल डाले, और जैन दर्शन के अनेक