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॥ ॐ ह्रीं श्रीं नमः
ऐं नमः ॥
|| सद्गुरुभ्यो नमः ॥
* जगत्कर्तृत्व-मीमांसा * [ सरल हिन्दी भाषानुवाद ]
5 परमात्मलक्षरण 5
परमात्मा ईश्वर, देव, भगवान इत्यादि अनेक नामों से स्तुत, स्मृत एवं पूजित किया जाता है । उस परमात्मा का क्या लक्षण है ? इस विषय में दोषरहित शुद्धज्ञानमयी स्वरूपस्थिति ही परमात्मा के लक्षण के रूप में सम्यग् प्रतीत होती है ।
संसार में नाना प्रकार के दोषों के विद्यमान रहते हुए भी विशेष राग और द्वेष संसार-बन्ध के कारण हैं । ये महाघातक हैं तथा जीवात्मा को पतन के महागर्त्त में डालने वाले हैं । इस प्रसङ्ग में किसी भी मतावलम्बी विद्वान् का कोई वैमत्य नहीं है । 'राग-द्वेष का परिहार करके जो कैवल्य अर्थात् पंचम केवलज्ञान को प्राप्त कर
जगत्कर्त्तृत्व-मीमांसा - १३