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________________ शिवमस्तु सर्वजगतः, पर-हित-निरताः भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु नाशं , . ___ सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥ २१ ॥ ['बृहच्छान्ति' स्मरण-स्तोत्र में से] अर्थ-सङ्कलना अखिल विश्व का कल्याण हो, प्राणी परोपकार में तत्पर बनें; व्याधि-दुःख-दौर्मनस्य आदि नष्ट हो और सर्वत्र मनुष्य सुख भोगने वाले हो। जैनम् जयति शासनम् ॥ श्रीवीर संवत्-२५२२ । - लेखक - श्रीविक्रम संवत्-२०५२ __परमपूज्य शासनसम्राट श्रीनेमि संवत्-४७ श्रीमद् विजय नेमि-लावण्यमागसर सुदी-११ दक्षसूरीश्वरजी महाराज सा. शनिवार के सुप्रसिद्ध पट्टधर-शास्त्र[मौन एकादशी] विशारद-साहित्यरत्न-कविदिनांक भूषण प्राचार्य श्रीमद् विजय २-१२-१६६५ । सुशीलसूरि स्थलश्रीजीरावला तीर्थ (राज.) ||
SR No.022444
Book TitleVishva Kartutva Mimansa Evam Jagat Kartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Jinottamvijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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