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हैं। जैसे शब्द परिवर्तनशील है, क्योंकि उत्पत्ति वाला है। यहाँ उत्पत्ति की व्याप्ति परिवर्तनशीलता के साथ है, जो साध्य से विरुद्ध है।
प्रस्तुत कार्यत्व हेतु अपने साध्य बुद्धिमत् कर्तृत्व के साथ अविनाभाव सम्बन्ध से रहता है, इसलिए विरुद्ध नहीं है। कार्यत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष अनुमान और आगम से अबाधित, धर्म और धर्मी के सिद्ध हो जाने पर प्रतिपादित किया गया हैअर्थात् पहले प्रमाणसिद्ध धर्म-धर्मी का कथन करके बाद में हेतु का कथन किया गया है। यह हेतु प्रकरणसम भी नहीं है, क्योंकि यहाँ कोई बाधक प्रत्यनुमान नहीं है। ध्यातव्य है कि जहाँ साध्य के अभाव का साधक कोई दूसरा अनुमान मौजूद हो उसे प्रकरणसम कहते हैं। यहां कार्यत्व हेतु के प्रतिकूल बुद्धिमद् अकर्तृत्व धर्म को सिद्ध करने वाला कोई प्रत्यनुमान नहीं है।
ईश्वर पृथ्वी, पर्वत आदि का कर्ता नहीं है, क्योंकि वह अशरीरी है, मुक्तात्मा की तरह, यह प्रत्यनुमान उक्त प्रत्यनुमान कार्यत्व हेतु का बाधक है, इसलिए कार्यत्व हेतु प्रकरणसम हेत्वाभास से दूषित है। यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि 'ईश्वर पृथ्वी पर्वत आदि का कर्ता नहीं है'
विश्वकर्तृत्व-मीमांसा-३६