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श्रद्धा एवं समर्पण का आगार
एक स्वर्णिम इतिहास का सृजन करने वाला । तन-मन के सन्ताप को प्रशान्त करने वाला || (१) श्री भ्रष्टापद जैन तीर्थ - "जिनमन्दिर"
परमोपकारी परमतारक देवाधिदेव श्री तीर्थंकर परमात्मा के अनन्त उपकारों के संस्मरण और कृतज्ञ भावना से प्रेरित होकर शक्तिसम्पन्न श्रेष्ठिवर्य को "जिनमन्दिर निर्माण", प्रभु प्रतिमा जी भरवाने का तथा प्रतिष्ठा का लाभ अवश्य लेना चाहिए ।
निर्माण कार्य हेतु अनेक श्रीसंघों का सहयोग प्राप्त हुआ है।
इस जिनमन्दिर में २४ तीर्थंकर परमात्मा की वर्ण के अनुसार भव्य जिनप्रतिमायें स्थापित होंगी ।
जिनमन्दिर का निर्माण ४५०० वर्ग फुट भूमि पर होगा, इस अष्टकोणीय जिनमन्दिर के चारों ओर गुलाबी पत्थर के कमल के फूलों की भव्य रचना होगी, जो अत्यधिक रमणीय व नयनाभिराम होगी ।
इस जिनमन्दिर का खनन - मुहूर्त्त प. पू. प्राचार्य भगवंत श्रीमद्विजय सुशील सूरीश्वर जी म.सा. एवं पू. पंन्यास प्रवर श्री जिनोत्तम विजय जी गणिवर्य म. की शुभनिश्रा में वैशाख शुक्ल - १०, शुक्रवार २० मई, १९९४ के
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