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वादविषयः
इस वाद में मुख्यतया "वायु का स्पार्शन प्रत्यक्ष नहीं होता है" इस नैयायिक सिद्धान्त का पू० उपा० म० ने खण्डन किया है। वायु के स्पार्शनप्रत्यक्ष के विघटन के लिये भिन्न भिन्न नैयायिक आदि ने जो द्रव्यप्रत्यक्ष में उद्भतरूप हेतुता आदि का निरूपण किया है इन सभी मतों की आलोचना कर के पू० उपा० ने 'मैं वायु को स्पर्श करता हुँ' इत्यादि प्रतीति की भ्रान्तता का निराकरण करके उसके बल से वायुस्पार्शनप्रत्यक्ष का समर्थन किया है।
५-वादमाला (३) (पृष्ठ ११ से २४१) प्रतिपरिचयादि:
पू० उपाध्यायजी म. ने ३ वादमाला का प्रणयन किया है उसमें इस वादमाला को हमने 'तृतीय' संज्ञा दी है।
इस वादमाला को पू० उपाध्यायजी ने लिखी हुई हस्तप्रत 'विमलगच्छीयमहेन्द्रविमल' के ज्ञान भंडार से हमें प्राप्त हुईजो ज्ञान भंडार आज अहमदाबाद में एल० डी० इन्स्टीट्युट में स्थित है । इस वादमाला की प्रत में कुल ११ पत्र हैं।
विषयः-वादमाला (३) में कुल ६ वाद है जिसमें भिन्न भिन्न पदार्थों का निरूपण किया है।
१-'वस्तु लक्षण विवेचन' नामक वाद में पू० उपा० ने सामान्यविशेषात्मकत्व को वस्तु का लक्षण बताया है। सामान्य और विशेष के स्वरूप का निदर्शन करने के बाद उस लक्षण की परीक्षा में अनेक अनुपपत्तियाँ का खण्डन करके और साथ साथ दीधितिकारविद्योतन-धर्मभूषण आदि के मत का भी आलोचन करके पू० उपाध्यायजी म० ने अपने लक्षण को स्थिर किया है।