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(३) विषयतावाद (पृष्ठ-५६-७८) प्रतिपरिचयादि:
इस वाद की दो हस्त प्रत हमें उपलब्ध हुई।
१ खंभात जैन अमरशाला स्थित ज्ञानभंडार की-जिसको खं'० संज्ञा से यहाँ व्यक्त किया है । यह प्रति पू. उपाध्यायजी के स्वहस्ताक्षरों से अलकृत है।
- २-अहमदाबाद देवशापाडा भंडार की प्रत-जिसको 'हे'० संज्ञा दी गई है। वं० प्रति में कुल ५ पत्र है और दे० में ४ पत्र है।
इस वाद के प्रकाशन में मुख्यतया खं० प्रति का ही आधार लिया गया है और दे० प्रति के पाठान्तर नीचे दिये गये हैं। यह पाव वावमाला के अन्तर्गत नहीं है।
वाद का विषय इस बाद में विषयता स्वरूपसम्बन्धविशेषरूप है इस प्राचीन मत का खण्डन कर के अतिरिक्तपदार्थ रूप विषयता का मण्डन किया गया है । विषयता के दो भेद का निरूपण करने के बाद विशेष्यता-प्रकारता-अवच्छेदकता--उद्देश्यता-विधेयता-आपाद्यता इत्यादि पर पर्याप्त आलोचन किया हुआ है ।
४-वायूष्मादेःप्रत्यक्षाऽप्रत्यक्षत्वविवादरहस्य प्रतिपरिचयः
इस रहस्यवाद की एक मात्र प्रति खंभात के जैन अमरशाला के भडार से प्राप्त हुई है । जिसमें ४ पत्र है। इस प्रति में हस्ताक्षर पू० उपाध्यायजी के हैं या दूसरे के इसमें सन्देह है फिर भी. प्रति का लेखन काल वही प्रतीत होता है जो पू० उपाध्यायजी का जीवन काल है।