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________________ १३१ मृशति । तन्नयाभिप्रायेण बौद्धाभिमतक्षणिकत्वसिद्धिः। एते नयाभिप्रायाः सकलस्वविषयाशेषात्मकमनेकान्तं प्रमाणविषयं विभज्य व्यवहारयन्ति । ऋजुसूत्र नय परम पर्यायार्थिक है, अर्थात् भूत और भविष्यत् कालकी अपेक्षा न करके शुद्धवर्तमानकालीन वस्तुरूपको विषय करता है । इसी नयकी अपेक्षासे बौद्धोंके माने हुए क्षणिकत्वकी सिद्धि होती है । नयोंकी ये अपेक्षायें उस प्रमाणके विषयका विभाग कर व्यवहारमें प्रवृत्त होते हैं कि जो प्रमाणका विषय सम्पूर्ण नयोंके विषयोंके समुदायस्वरूप है और अनेकान्तात्मक है । अर्थात् प्रमाण अनेक धर्मों के समुदायरूप वस्तुके समुदाय और समुदायी ऐसे दोनों अंशोंमें प्रवृत्त होता है । और नय, प्रमाणद्वारा गृहीत वस्तुके एक देशमें प्रवृत्त होता है। इन्ही नयोंमेंसे एक नयको गौण और एकको मुख्य करनेसे व्यवहारकी सिद्धि होती है। किन्तु वस्तु एक धर्मात्मक नहीं है जिससे सर्वथा एक धर्मको लेकर क्षणिकत्वादिककी सिद्धि हो जाय । । स्यादेकमेव द्रव्यात्मना वस्तु, नो नाना। स्यानानैव पर्यायात्मना नैकमिति । तदेतत्प्रतिपादितमाचार्यसमन्तभद्रस्वामिभिः "अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः । अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोर्पितानयात् ॥१॥" इति । अनियतानेकधर्मवद्वस्तुविषयत्वात्प्रमाणस्य नियतैकधर्मवद्वस्तुविषयत्वाच नयस्य । यद्येनामाईती सरणिमुल्लङ्घय सर्वथैकमेवाद्वितीयं ब्रह्म नेह नानास्ति किश्चन, कथश्चिदपिनाना नेत्याग्रहः स्यात्तदेतदर्थाभासः। एतत्प्रतिपादकमतिवचनमागमाभासः, प्रत्यक्षेण सत्यं भिदा तत्वं भिदेत्यादिनागमेन च बाधितविषयत्वात् ।
SR No.022438
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBansidhar Shastri
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1913
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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