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निश्चय होता है और व्याप्तिके निश्चयसे ही सहभाव या क्रमभाव निश्चित होता है; क्योंकि ऐसा कहा है कि "सहभाव या क्रमभावके नियमको ही अविनाभाव कहते हैं" । यह सामनेकी वस्तु वृक्ष है; क्योंकि यह शिंशपा है, जो जो शिशपा होता है वह वह वृक्ष होता है, जैसे कि यह वृक्ष । यहांपर यदि हेतु रहै और साध्य न हो तो इस विपक्षमें सामान्यविशेषके नियमित सम्बन्धका टूट जाना ही बाधक प्रमाण है । वृक्षत्व सामान्य धर्म है और शिशपात्व उसका विशेष है, सामान्यके अभाव में विशेष नहीं रह सकता ।
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न चैवं मैत्रतनयत्वमस्तु श्यामत्वं मास्त्वित्युक्ते किञ्चिद्वाधकमस्ति तस्मान्मैत्रतनयत्वं हेत्वाभास एव । तस्य तावत्पक्षधर्मत्वमस्ति, पक्षीकृते गर्भस्थे तत्सद्भावात् । सपक्षेषु सम्प्रतिपन्नेषु तस्य विद्यमानत्वात्सपक्षे सच्वमप्यस्ति । विपक्षेभ्यः पुनरश्यामेभ्यचैत्रपुत्रेभ्यो व्यावर्तमानत्वाद्विपक्षाद्व्यावृत्तिरस्ति । विषयबाधाभावादबाधितविषयत्वमस्ति । नहि गर्भस्थस्य श्यामत्वं केनचिद्वाध्यते । असत्प्रतिपक्षत्वमप्यस्ति, प्रतिकूल समबलप्रमाणाभावात् । इति पाञ्चरूप्यसम्पत्तिः । त्रैरूप्यं तु सहस्त्रे शतन्यायेन सुतरां सिद्धमेव ।
परन्तु मैत्रतनयत्व रहै और श्यामत्व न रहै ऐसा विपरीत कहने में कोई बाधक प्रमाण नहीं है; इसलिये मैत्रतनयत्व हेत्वाभास ही है । परन्तु इसमें पक्षधर्मता है; क्योंकि गर्भप्राप्त मैत्रपुत्ररूप पक्ष में मैत्रतनयत्व हेतु रहता है । सपक्ष में सत्ता भी है; क्योंकि सपक्षभूत वर्तमानके सभी पुत्रों में वह रहता है । विपक्षसे व्यावृत्ति भी है; क्योंकि विपक्षभूत सभी मैत्रके पुत्रोंसे जिनमें कि कोई भी श्याम नहीं है, वह व्यावृत्त है । इसके विषमें प्रत्यक्षादि प्रमाणसे कोई बाधा नहीं आती इसलिये अबांन्या० दी० ७
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