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प्रमाण-नय-तत्त्वालोक
प्रतीतसाध्यधर्म विशेषण पताभास प्रतीतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-आर्हतान्प्रति अवधारणवज्यं परेण प्रयुज्यमानः समस्ति जीव इत्यादिः ॥ ३९ ॥
अर्थ-जैनों के प्रति अवधारण ( एव-ही ) के बिना 'जीव है' इस प्रकार कहना प्रतीतसाध्यधर्भविशेषण पक्षाभास है।
विवेचन–'जीव है' यहाँ जीव पक्ष है और 'है' साध्य है । यह साध्य जैनों को प्रतीत सिद्ध है। अतः इस पक्ष का साध्य-धर्मरूप विशेषणपक्षाभास होगया । यदि इस पक्ष में 'एव-ही' का प्रयोग किया गया होता तो यह साध्य अप्रतीत होता क्योंकि जैन जीव में एकान्त अस्तित्व स्वीकार नहीं करते, किन्तु पर-रूप से नास्तित्व भी मानते हैं। . . . निराकृत साध्यधर्मविशेषण पक्षाभास के भेद
निराकृतसाध्यधर्मविशेषणः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनादिभिः साध्यधर्मस्य निराकरणादनेकप्रकारः ॥४०॥ . अर्थ-निराकृत साध्यधर्मविशेषण पक्षाभास, प्रत्यक्ष निराकृत, अनुमाननिगकृत, आगमनिराकृत, लोकनिराकृत और स्ववचननिराकृत आदि के भेद से अनक प्रकार का है। ........... . प्रत्यक्षनिराकृत
प्रत्यक्षनिराकृतसाध्यधर्मविशेषणो यथा-नास्ति भूतविलक्षण आत्मा ॥ ४१ ॥