SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (१०६) कथंचित् भेद बताया गया है। अनुमान का प्रयोग इस प्रकार होगाक्रिया से कर्ता कथंचित् भिन्न है, क्योंकि दोनों में साध्य-साधक संबंध है। जहाँ साध्य-साधक सम्बन्ध होता है वहाँ कथंचित् भेर होता है; जैसे देवदत्त में और जाने में ।' । कर्त्ता साधक है और क्रिया साध्य है। एकान्त का खण्डन न च क्रिया क्रियावतः सकाशादभिन्नैव भिन्नैव वा, प्रतिनियतक्रियाक्रियावद्भावभङ्गप्रसङ्गात् ॥ २० ॥ . अर्थ-क्रिया, क्रियावान् ( क ) से न एकान्त भिन्न है और न एकान्त अभिन्न है । एकान्त भिन्न या अभिन्न मानने से निबत 'क्रिया-क्रियावत्व' का अभाव हो जायगा। विवेचन-योग लोग क्रिया और क्रियावान में एकान्त भेद मानते हैं और बौद्ध दोनों में एकान्त अभेद मानते हैं। यह दोनों एकान्त मिथ्या हैं। यदि क्रिया और क्रियावान में एकान्त भेद माना जाय तो यह 'क्रिया इस क्रियावान् की है' ऐसा नियत सम्बन्ध नहीं सिद्ध होगा । मान लीजिये. देवदत्त क्रियावान , गमन क्रिया कर रहा है, मगर वह क्रिया देवदत्त से इतनी भिन्न है जितनी जिनदत्त से भिन्न है। तब वह क्रिया जिनदत्त की न होकर देवदत्त की ही क्यों कहलायगी ? किन्तु वह क्रिया देवदत्त की ही कहलाती है इससे यह सिद्ध होता है कि क्रिया देवदत्त (क्रियावान् ) से कथंचित् अभिन्न है। इससे विपरीत, बौद्धों के कथनानुसार अगर क्रिया और क्रियावान में एकान्त अभेद मान लिया जाय तो भी 'यहा क्रिया इस
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy