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आप्त-मीमांसा।
तभद्र ! यह मुनिननैं हमारा स्तवन निरतिशय गुणनिकरि किया सो हमारे देवनिका आगम आदि विभूति पाइये है, ऐसे अतिशयनिकरि हम महान हैं-स्तवन करने जोग्य हैं । ऐसे अतिशयसहित गुणनिकरि हमारा स्तवन क्यों न किया । ऐसे पूछ तैं समंतभद्राचार्य भगवानकू कहैं हैंकैसे हैं समंतभद्राचार्य ? मोक्षका मार्गस्वरूप जो अपनां हित ताकू चाहते जे भव्यजीव तिनकै सम्यक् अर मिथ्या जो उपदेशका विशेष ताका ज्ञानकै अर्थि आप्तकी परीक्षाकू करते हैं। बहुरि कैसे हैं ? श्रद्धा अर गुणज्ञता इन दोऊनौं प्रयुक्त है मन जाका ऐसे हैं। ऐसैं उत्प्रेक्षा अलंकाररूप वचन है । ऐसैं भगवान आप्तके साक्षात् पूछै मानूं समंतभद्राचार्य कहैं हैं
देवागमनभोयानचामरादिविभूतयः । ___ मायाविष्वपि दृश्यते नातस्त्वमसि नो महान् ॥ १॥
अर्थ-हे भगवन् ! तुमारे देवनिका आगमन आदि तथा आकाशविौं गमन आदि तथा चामरछत्रादि विभूति पाइये हैं इस हेतु" तौ . हमारे मुनिनकै तुम महान् स्तुति करने योग्य नाही हो, जातें यह विभूति तौ मायावी जे मस्करी आदिक इन्द्रजालवाले तिनविर्षे भी । पाइये है । यातें जो आज्ञा प्रधानी हैं ते देवनिका आगम आदि । विभूति अपनां परमेष्ठी परमात्माका चिह्न मानूं अर हम सारखे परीक्षा । प्रधानी तो ऐसे चिह्नतें परमेष्ठी स्तुति करने योग्य नाहीं मानें हैं। जातें यह स्तव आगमके आश्रय है। बहुरि या स्तवनका हेतु देवनिका आगमादि विभूतिसहितपणां है सो यह हेतु भी आगम-आश्रित है । प्रतिवादकै तौ प्रमाणसिद्ध ही नाहीं है, पैला साक्षात् देवागमादि देख्या बिना कैसैं मानें । अर आगमप्रमाणवादीकै भी मायावी आदि विपक्षमैं वर्तनेंतें व्यभिचारी है। साध्यकू कैसैं साधै । बहुरि आगम