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अनन्तकीर्ति ग्रन्थमालायाम्बहुरि दोय श्लोकनिमैं संसारकी उत्पत्तिका क्रम कया है । बहुरि पीछ दोय श्लोकनिमैं प्रमाणका स्वरूप, संख्या, विषय, फल इन चारनिका वर्णन करि अर दोय श्लोकनिमैं स्यात्पदका स्वरूप कह्या है। पीछे एक श्लोकमैं स्याद्वादकू अर केवलज्ञानकू कथंचित् समान दिखाया । पीछै नयका हेतुरूप स्वरूप एक श्लोकमैं कहि अर प्रमाणका विषय वस्तुका स्वरूप एक श्लोकमैं कह्या; पीछे एक श्लोकमैं याहीकू दृढ़ किया, पीछे प्रमाणनयके वाक्यका स्वरूप चारि श्लोकमैं कह्या । पीछ एक श्लोकमैं स्याद्वादकी स्थिति कही । अर पीछे एक श्लोकमैं ग्रंथ कहनेका प्रयोजन कहि उगणीस श्लोकरूप परिच्छेद समाप्त किया है । सर्व श्लोक एक सौ चौदह भये ऐसैं दश परिच्छेद रूप पीठका है ॥ १० ॥
इति पीठिका।
___अथ अष्टसहस्रीनाम टीकाका कर्ता श्रीविद्यानंन्दिनामा आचार्य कहै है-जो यह देवागमनामा शास्त्र है सो कैसा है ? शास्त्रका प्रारम्भ कालविर्षे रची जो स्तुति ताकै गोचर जो आप्त ताकै गुणनिका अतिशयकी परीक्षा स्वरूप है। सो ऐसैं मोक्षशास्त्र जो तत्त्वार्थसूत्र ताकी. आदिविर्षे शास्त्रकी उत्पत्ति तथा शास्त्रका ज्ञानका कारणपणांकरि तथा मंगलकै आर्थि मुनिननैं भगवान आप्तका स्तवन ऐसैं किया--
मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्।
ज्ञातारं विश्वतत्वानां वन्दे तद्गुणलब्धये ॥१॥ याका अर्थ--मोक्षमार्गके प्राप्त करनेवाले कर्मरूपपर्वतके भेदनेवाले समस्त तत्त्वके जाननेवाले ऐसे आप्तको मैं तिनके गुणनिकी प्राप्तिकै अर्थि वंदौं हूं। ऐसे अतिशयरहित गुणनिकरि स्तवन कियाँ सो भगवान आप्त मानूं समंतभद्राचार्यकू साक्षात पूछया जो हे समं.