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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्पंचमकालसुआदिमैं, केवलज्ञानी तीन । श्रुतकेवलि हू.पंच जे, नमौं कर्ममल छीन ॥ ४॥ तत्वारथशासन कियो, उमास्वामि मुनि-ईश । सदा तासके चरन युग, नमौं धारि कर शीस ॥५॥
सवैया ३१ सा । स्वामि जो समंतभद्र तत्वारथशासनकी महाभाष्य रची ताकी आदि| विचारकै । परम-आप्त-मीमांसा देवागमनाम स्तुति स्यादवादसाधनमैं भाषी विस्तारके। अष्टशती वृत्ति ताकी कीनी अकलंकदेव ताकू विद्यानंदसूरि भले मन धारिकैं। अलंकाररूप वरनी हजार आठ ऐसे तीन मुनिराय पाय नमौं मद छारिक ॥६॥ _ दोहा।
। आगमकी उत्पत्तिको, कारन आप्तविचार। ताहीते है ज्ञानवर, नमनै योग्यनिहार ॥७॥ कियो नमन अब करतहूं, देवागम थुति देषि ।
देशवचनिका तासकी, टीका आशय पेषि ॥ ८॥ ऐसें मंगलके अर्थि इष्टकू नमस्कार किया। अब शास्त्रकी उत्पत्ति तथा शास्त्रका ज्ञान आप्तते ही होय याते शास्त्रके मूलकर्ता तौ परमभट्टारक श्रीऋषमदेव आदि वर्द्धमानपर्यंत चउवीस तीर्थकर चतुर्थकालमैं भये । अर तिनकी दिव्यध्वनिलेय गणधरीन. द्वादशांग श्रुतरूप रचना करी तिनकी परिपाटी अनुसार इस पंचमकालमै भये तिनने शास्त्रोंकी प्रवृत्ति करी ऐसे शास्त्रनिकी उत्पत्ति तथा शास्त्रनिके ज्ञानके कारण आप्त ही हैं । ते शास्त्रकी आदिविौं नमस्कार जोग्य हैं । ऐसें जानि तिनकू नमस्कारकरि देवागमनाम स्तोत्रकी देशभाषामयवचनिका लिखू हूं। ताका संबंध ऐसा-जो प्रथम तौ उमास्वामिमुनिन– तत्वार्थसूत्र दशाध्यायरूप रच्या ताकी गंधहस्तिनामा महाभाष्य श्रीस्वामिसमंतभद्रनैं रची, ताकी आदिमैं आप्तकी परीक्षारूप