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________________ सप्तभंगी. (५३) अर्थ-स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, स्यात् अवक्तव्य ये तीनो भंग वस्तुके सम्पूर्ण धर्मग्राही होनेसे सकलादेशी कहे जाते हैं. मुख्यतासे अस्तिभाव अस्तिरूप है. नास्तिरूप नहीं है. इसीतरह सातोभंग समजना. एवं नित्यपने सप्तभंगी, अनित्यपने सप्तभंगी और सामान्य धर्म, विशेष धर्म, गुण, पर्याय प्रत्येक में सप्तभंगी कहना। विवेचन-स्यात्अस्ति, स्यात्नास्ति और स्यात् अवक्तव्य य तीनो भांगे सकलदेशी हैं. शेष चार भंग विकलादेशी कहलाते हैं. ये चारों भांगे वस्तुके एक देशग्राही हैं. तथा अस्ति धर्म में जो अस्तिता है वह नास्तिपने नहीं है किन्तु नास्तिभाव नास्तिरूप है उस में अस्तिता नहीं है । शंका-वस्तु में जो नास्तिपना है उसको अस्तिपने कहते हो तो नास्तिपने में अस्तिताकी नां क्यों कहते हो ? उत्तर-जो नास्तिता है वह अस्तिरूप है और अस्तिधमें है वह नास्तिरूप में नहीं है । इसी तरह नित्यता, अनित्यता, सामान्यधर्म, विशेषधर्म, गुण, पर्यायादि में भी सप्तभंगी लगालेना जैसे. ज्ञानं ज्ञानत्वेन अस्ति दर्शनादिभिः स्वजाति धर्मः अ. चेतनादिभिः विजातिधर्मैः नास्ति, एवं पंञ्चास्तिकेये प्रत्यस्तिकायमनन्ता सप्तमंग्यो भवन्ति अस्तित्वाभावे गुणाभावात् पदार्थे शुन्यतापत्तिः नास्तिताभावे कदाचित् परभावत्वेन परिणमनात् सर्वसङ्करतापत्तिः व्यंजक योगे सत्ता स्फुरति तथा असत्ताया अपि स्फुरणात् पदार्थानामनियताप्रतिपत्तिः तत्वार्थे-तद्भावाव्ययं नित्यम् ।।
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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