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________________ सप्तभंगी सकलादेशः अवक्तव्य नामक पांचवां भंग होता है. ऐसे जीव भी चेतनत्वादि पर्याय से अस्ति और शेष पर्यायों से अवक्तव्य है. इति स्यात् अस्ति अवक्तव्य रूप पांचवां भंग कहा. तथा एकदेशे पर पर्यायैर सद्भावेनार्पितो विशेषतः अन्यैस्तु स्वपर पर्यायैः सद्भावासद्भावाभ्यां सत्वासत्वाभ्यां युगपदसांकेतिकेन शब्देन वक्तुं विवक्षितकुंभोऽसन् अवक्तव्यश्च भवति । अकुंभोऽवक्तव्यश्च भवतीत्यर्थः देशे तस्याकुंभत्वात् देशे वक्तव्यत्वादिति षष्ठो भगः । अर्थ – एक देशमें परपर्याय से असद्भाव अर्पित - स्थापित किया जाय और अन्य देश में स्वपर्याय से अस्तिता और पर पर्याय से नास्तिता को युगपत् - एक समय असांकेतिक शब्द से कहने के लिये इच्छा हो क्योंकि विना कहे श्रोता को ज्ञान नहीं हो सक्ता इस वास्ते स्यात् पदसे अन्य भांगों का अपेक्षा रखते हुवे तथा सब धर्म की समकालता जनाने के लिये स्यात् नास्ति वक्तव्य यह छठ्ठा भंग कहा । एवं जीव परपर्याय से नास्ति और स्वपर - उभय पर्याय से वक्तव्य पुर्ववत् समझ लेना इति स्यात् क्तव्य रूप छठ्ठा भंग कहा. नास्ति अव · तथा एकदेशे स्वपर्यायैः सद्भावेनार्पितः एकस्मिन् देशे परपर्यायैरसद्भावेनार्पितः अन्यस्मिंस्तु देशे स्वपरोभय पर्यायैः सद्भावासद्भावाभ्यां युगपदेकेन शब्देनवक्तुं विवक्षितः सन् असन् वक्तव्यश्च भवति इति सप्तमो भङ्गः । ऐतेन एकस्मिन् वस्तुन्यर्पितानर्पितेन सप्तभंगी उक्ता ।
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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