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नगचक्रसार हि० अ० तीनो भंग सकलादेशी है. सर्व वस्तू को संम्पूण रुप से ग्रहण करता है.
अथ चत्वारो विकलादेशाः तत्रा एकस्मिन् देशे स्वपर्याय सत्वेन अन्यत्र तु परपर्यायासत्वेन संश्च असंश्च भवति घटोऽघटश्च एवं जीवोऽपि स्वपर्यायैः सन् परपर्यायैः असन् इति चतुर्थो भंगः ।
अर्थ--अब चार विकलादेशी भंग कहते है. जो वस्तुस्वरुप का एक देश ग्राही हो उसको विकलादेशी कहते हैं. जैसे-एकदेश में स्वपर्याय की सत्यता परपर्याय की असत्यता विविक्षित हो उस समय वस्तु सत्य, असत्यरुप है. अर्थात् घट है और घट नहीं भी है. इसी तरह जीव भी स्वपर्याय से सत् परपर्याय से असत्. एक समय अस्ति नास्तिरुप है. परन्तु कहने के लिये असंख्याता समय चाहिये वास्ते स्यात् पूर्वकं-स्यात् अस्ति नास्ति यह चोथा भंग कहा. __ तथा एकस्मिन् देशे स्वपर्यायैः सद्भावेन विवक्षितः
अन्यत्र तु देशे स्वपरोभयपर्यायैः सत्वासत्वाभ्यां युगपदसां केतिकेन शब्देन वक्तुं विवक्षितः सन् अवक्तव्यरूपः पंचमो भङ्गो भवति एवं जीवोऽपि चेतनत्वादिपर्यायैः सन् शेषैरवक्तव्य इति ।
अर्थ-एक देशमें स्वपर्याय से सद्भाव-अस्तिता. विवक्षित कहने की इच्छा हो और अन्य देश में स्वपर दोनों पर्यायों से सत्वासत्व युगपत् असांकेतिक शब्द से विवक्षित हो वह अस्ति