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नयचक्रसार, हि० अ० विवक्षित द्रव्यादिमें उस पर द्रव्यादिका सर्वदा अभाव है इस अभावको नास्ति स्वभाव कहते हैं. जैसे-जीवमें अपने ज्ञानदर्शनादि भावों की अस्तिता है और पर द्रव्यादिमें रहे हुवे अचेतनत्वादि भावोंकी नास्तिता है. परन्तु वह नास्तिता उस द्रव्यमें अस्ति रुपसे वर्तती है जैसे--घरमें घटत्वादि धर्मका अस्तित्व है. परन्तु पटत्वादि परधर्मोकी नास्तिता है. इस तरह सब जगह समझ लेना.
विवेचन-पूर्वोक्त अस्तिताभावको नास्ति स्वभाव कहते हैं. श्रीभगवतीसूत्र में कहा है-" हे गोतम ? अत्थितं अत्थिते परिणमइ नत्थितं नत्थिते परिणमइ” तथा ठाणांगसूत्रमें-" १ सियअत्थि २ सियनत्थि ३ सियअत्थिनत्थि ४ सियअवत्तव्वं " यह चोभंगी कही है और विशेषावश्यक सूत्रमें कहा है कि जो वस्तुका अस्तित्व नास्तित्व जाने वह सम्यग्ज्ञानी और जो न जाने या अयथार्थ जाने वह मिथ्यात्वी. उक्तं च- सदसद् विशेषणाओ भवहेउजहथ्थिओवलंभाओनाणफलाभावाओ मिच्छादिठिसअन्नाणं ॥ १ ॥ इस गाथाकी टीका स्याद्वादोपलक्षित वस्तु स्याद्वादश्च सप्तभंगी परिणामः एकैकस्मिन् द्रव्ये गुणेपर्यायेच सप्तसप्तभंगा भवन्त्येव अतः अनन्तपर्यायपरिणते वस्तुनिअनन्तः सप्तभंगा भवन्ति.इति रत्नाकरावतारिकायां वे सातो भांगे द्रव्य, गुण, पर्यायों में स्वरूप भेदसे होते हैं. इन सात भागों के परिणामको स्याद्वाद कहते हैं.
॥ सप्त भंगीमाह ॥ तथाहि स्वपर्यायः परपर्यायैरुभयपर्यायैः सद्भावेनासद्भावेनोभवेन वार्पितो, विशेषतः कुंभः अकुंभ: कुंभाकुंभो वा