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________________ सामान्य स्वभाब. (२५) विवेचन - उस सामान्य स्वभाव के मुख्य छे भेद हैं. वे सवद्रव्यों में व्यापकपने हैं. ( १ ) अस्तित्व ( २ ) वत्तुत्व ( ३ ) द्रव्यत्व (४) प्रमेयत्व (५) सत्त्व (६) अगुरुलघुत्व. ये परिणामिक रुपसे परिणत है. परन्तु किसी की सहायता से नहीं है. ( १ ) सब द्रव्यों में उत्तर सामान्य स्वभाव नित्य अनित्यादि तथा विशेष स्वभाव परिणामिकादिके आधारभूत धर्म को अस्तिस्वभाव कहते हैं. ( २ ) गुणपर्याय के आधारभूत पदार्थ को वस्तु स्वभाव कहते हैं. ( ३ ) अर्थ जो द्रव्यकी क्रिया. जैसे- धर्मास्तिकाय की. चलन सहायक क्रिया, अधर्मास्तिकाय की स्थिर सहायक क्रिया, आकाशद्रव्य की अवगाहनरूप क्रिया, जीवकी उपयोग लक्षण क्रिया और पुलों की मिलन विखरनरूप क्रिया को प्राप्त करनेका. जो धर्म अर्थात् पर्याय की प्रवृत्ति को अर्थ क्रिया कहते हैं. उस अर्थ क्रिया के आधार धर्मको द्रव्यत्व स्वभाव कहते हैं. प्रकारान्तर लक्षण कहते हैं. उत्पादव्यय की प्रसव शक्ति अर्थात् आविर्भावशक्ति तथा व्ययीभूत पर्याय की तिरोभाव - अभावरुप जो शक्ति उसका जो आधारभूत धर्म उसको द्रव्यत्व स्वभाव, कहते हैं. ( ४ ) स्व आत्मा और पर अर्थात् पुद्गलादि अन्य यों को यथार्थपने जाने उसको ज्ञान कहते हैं. वह ज्ञान पांच प्रकारका हैं. उस ज्ञानके उपयोग में आनेवाली शक्ति को प्रमेयत्व कहते हैं वह प्रमेयत्व सब द्रव्यों का मुख्य धर्म हैं, प्रमाणसे प्राप्त हुई जो वस्तु उसको प्रमेय कहते हैं. गुणपर्याय सब प्रमेय है.
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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