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________________ प्रमाणस्वस्प. (१५) सद्दशावलंबीपने विनाजानी वस्तु का ज्ञान प्राप्त हो जैसेबैल बलद सरषिी गाय यहां बैल से गाय की पहिचान हुइ इसको उपमा प्रमाण कहते हैं। यथार्थ भावों का उपदेशक जो पुरुष उसको प्राप्त कहते है , उत्कृष्ट प्राप्त तो तिराग रागद्वेष रहित सबैझ केवली हैं. उनके कहे हुवे वचनों को आगम कहते है. जो रागद्वेष तथा प्रज्ञान के देष से आगे पीछे या न्यूनाधिक वचन कहा जाय उस को भागम नहीं कहते. किन्तु अरिहंतो के वचन आगम प्रमाण है. उस के अनुयायी पूर्वापर अविरोध, मिथ्यात्व, असंयम, कषाय से रहित. भ्रान्ति विना स्याद्वाद संयुक्त साधक है वह साधक । बाधक है वह बाधक । हेय है वह हेय, उपादेय है वह उपादेय इत्यादि विवेचन सहित कहा हुवा है उस को आगम प्रमाण कहते हैं. उक्तं च " सुतं गणहररइवं, तदेव पत्तेयबुद्धरइयं च ।। सुअकेवलीणा रइयं अभिन्नदशपुब्बिणा रइयं ॥ १ ॥ इत्यादि सदुपयोगी भवभीरू जगतजीवों के उपकारी ऐसे श्रुत आमनाय को धारन करनेवाले जो श्रुत के अनुसार कहे उनका वचन भी प्रमाणरूप है। किसी फलरूप लिंग को ग्रहण कर के अनजान पदार्थ का निरधार करना उस को अर्थापत्ति प्रमाण कहते है. जैसे-देवदत्त का शरीर पुष्ट है वह दिन को नहीं खाता तब अर्थापत्ति से मालूम होता है वह रात को खाता होगा इससे शरीर पुष्ट है. इसको अर्थापत्ति प्रमाण कहते है. यह प्रमाण जाति से अनुमान प्रमाण का अंश है. इसलिये अनुयोगद्वारमें प्रथक नहीं कहा।
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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